मित्रो आपका प्यार ओर जो मुझे मिल रहा है उसका मै वघाई शुक्रगुजार हु मेरी भी यही कोशिश है की ज्योतिष सिखने वाले मित्रो को मेरी पोस्ट से ज्ञान मिले किन्तु कुछ लोग ईसमे मे भी मेरा स्वार्थ ढुंढते जीवन के चतुष्कोणीय आकार मे गुरु का महत्व जीव के रूप मे देखा जाता है यह जिस भाव मे अपनी युति को प्रदान करता है वह भाव एक प्रकार से सम्पूर्ण जीवन का केन्द्र बिन्दु बन जाता है। गुरु के दो तीन प्रभाव माने जाते है एक प्रभाव मार्गी गुरु का होता है और दूसरा प्रभाव वक्री गुरु का तथा तीसरा भाव अस्त गुरु का होता है। गुरु जब कुंडली मे मार्गी होता है तो जातक के लिये अपने परिवार समाज रिस्ते नाते शिक्षा आदि के साथ संस्कृति का कारण वही बन जाता है जो उसके पैदा होने के बाद उसे बिरासत मे मिले होते है लेकिन वही गुरु अपने समाज परिवार और रीति रिवाज से दूर होकर अपने कार्य व्यवहार समझ और अपनी खुद की योग्यता से अपने भविष्य का निर्माण करने के लिये उत्तरदायी हो जाता है। गुरु का मार्गी होना एक प्रकार से बहती हवा के साथ चलना होता है और वक्री होने से बहती हवा से विरुद्ध चलने जैसा होता है। इस बात को एक प्रकार और भी समझा जा सकता है कि जो लोग लीक से हटकर चलने वाले होते है वह वक्री गुरु की श्रेणी मे आजाते है,कहा भी जाता है - "लीक छोड तीनो चलें शायर शेर सपूत",यानी लेखक और शेर के साथ सपूत को भी जोडा गया है यह तीनो ही लीक को छोड कर चलने वाले होते है।
ऐक उदाहरण कुंङली से कुंडली मकर लगन की है और स्वामी शनि सप्तमेश के साथ अष्टम भाव मे है। अष्टम भाव के लिये ज्योतिष मे जो विवरण मिलता है वह सबसे उत्तम विवरण जोखिम से सम्बन्धित कामो के लिये मिलता है इसके साथ ही जब शनि जो लगनेश है वह जोखिम के कामो के साथ सप्तमेश को साथ ले लेते है तो व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार से अपनी गति विधि के प्रसारित करने के कारण जो भी इस भाव से सम्बन्धित कारक होते है वह फ़्रीज होने लगते है। जैसे कोई व्यक्ति अपने कार्य से राज्य के प्रति स्कूल के प्रति सरकारी और राजनीति से सम्बन्धित गुप्त कार्य कर रहा होता है और जातक अपनी हलचल अगर इस प्रकार के लोगो के साथ शुरु कर देता है तो लोग अक्समात चुप हो जाते है। और उस समय इतने शांत हो जाते है कि व्यक्ति को आगे चलकर अहसास भी नही होता है कि जहां उसने अपनी गतिविधि को शुरु किया है वहां कभी गलत गतिविधि भी हुआ करती थी। कुंडली का मुख्य केन्द्र बिन्दु गुरु वक्री होकर कर्जा दुश्मनी बीमारी और नौकरी के भाव मे है जातक को इन्ही क्षेत्रो के प्रति अधिक रुझान होना इनके बारे मे ज्ञान प्राप्त करना और इन्ही कारको के प्रति अपनी योग्यता को जाहिर करने का अवसर जीवन मे मिलता रहता है। इसके साथ ही जातक के लिये एक बात और भी देखी जा सकती है कि जातक को यह गुरु अपनी युति से वह सब प्रदान करता है जो एक साधारण व्यक्ति को प्रदान नही कर पाता है जैसे एक साधारण व्यक्ति अपनी रुचि से बहुत कोशिश करता है कि वह दिये गये पाठ या चलने वाली गतिविधि को याद कर ले पर वह याद नही कर पाता है और वही पर अगर गुरु वक्री वाला जातक अपनी बुद्धि को चलाने के लिये सामने आता है तो एक चौथाई समय मे ही अपनी योग्यता से होने वाली घटना किये जाने वाले काम और कठिन से कठिन विषय को याद करने मे अपने को आगे बढाता चला जाता है। यह गुरु किसी भी प्रकार के किये जाने वाले गुप्त कार्य धन से सम्बन्धित वह कार्य जो गुप्त होते है और वह सामने नही आते है उन्हे अपनी योग्यता से निकालकर बाहर ले आता है।
इस गुरु का पहला मार्ग मंगल को साथ लेकर शनि चन्द्र के साथ मिलने की योग्यता को धारण करता है,शनि गुरु के प्रभाव से शिक्षा के क्षेत्र स्थानीय रक्षा के कारण स्कूली विषयों मे रुचि रखने वाले लोग इस गुरु की शक्ति मे इजाफ़ा करते है। गुरु जो अपनी युति को उल्टे रूप मे प्रस्तुत करने वाला होता है वह बुध की मिथुन राशि मे होने के कारण लेखन क्रिया मे अपनी योग्यता को तुरत फ़ुरत ग्रहण कर लेता है इसके अलावा भी गुरु का कालपुरुष की कुंडली से कन्या राशि मे होने से जातक को नौकरी आदि के क्षेत्र मे अच्छी प्रगति देता है लेकिन अपनी गति से उल्टे रूप से धन को प्राप्त करने के लिये गुरु से आगे के मंगल को अपने सामने रखता है। जातक की कुंडली मे मंगल नीच का है और नीच के मंगल का योग लाभ भाव मे विराजमान बुध से भी है बुध भी इस कुंडली मे छठे भाव का मालिक भी है और भाग्य का कारक भी है इसलिये जातक को अपनी शक्ति से गूढ विषयों के प्रति जानकारी प्राप्त करना,लोगो के भावो को समझ कर अपने कार्यों को करना जो भी कार्य किये जाये वह एक प्रकार से ब्रोकर की हैसियत से करना और जो लोग गुप्त रूप से अपने को जमीनी कारणो से जुड कर और भूमिगत काम करने वाले होते है उनके बारे मे खुद के अनुभव से समीक्षा करने की शक्ति गुरु के अनुसार ही मिलती है। गुरु बुध के घर मे होने से बुध के प्रभाव को प्रस्तुत करने वाला है और वक्री होने के कारण अपने को बैंकिंग आदि के क्षेत्र से जोड कर भी चलता है। नीच का मंगल सप्तम मे होने से विवाह आदि के कारणो मे क्लेश का कारण भी बनाता है मंगल पर केतु की नजर होने से जातक को एक से अधिक विवाह करने की अपनी योग्यता को भी प्रदान करता है लेकिन गुरु के वक्री होने से शादी विवाह का रूप अलावा जाति से सम्बन्धित भी हो सकता है और बुध के वृश्चिक राशि मे होने से विवाह वैधव्य आदि के कारको से भी जुडा होता है जैसे दुर्घटना आदि के कारणो से जुडे लोग और असहाय लोग जो जातक की कृपा पर आधारित होते है आदि बाते विवाह के लिये मानी जा सकती है। लगनेश शनि का सप्तमेश चन्द्रमा के साथ होने से विवाह मे देरी का कारण भी बनता है और जो भी शादी सम्बन्ध वाली बात चलती है उसके अन्दर जातक को एक प्रकार से धीरे धीरे प्रोग्रेस करने के कारण भी शादी विवाह के लिये दिक्कत मे जाना जा सकता है। चन्द्रमा के साथ होने से जो भी भावनाओ से रिस्ते आदि जोडे जाते है वह भी एक प्रकार ठंडी और सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अलग होने के कारण अपनी भावनाओ को कह भी नही पाते है और दूर रहकर केवल गतिविधियों पर अपनी नजर को रखते है। जातक की शादी का समय आने वाले साल दो हजार तेरह मे सात जून के आसपास मिलता है। मित्रो ज्ञान वाँटने से वङता है यही मेरा स्वार्थ है अगर आप मुझ से अपनी किसी समस्या का समाघान या कुंङली की विवेचना करना चाहते है या असली रतन चाहते है तो सम्पर्क करे
Monday, 30 May 2016
कुंडली ज्ञान 2
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment