आपलोग के लिए पहली बार परम गोपनीय परमेश्वरी चण्डी का अति गुप्त रहस्य का वर्णन करना चाहता हूँ जो मुझे गुरु कृपा से प्राप्त हुआ है
भगवती दुर्गा के बारे में हमारे कुछ अवर्णनीय सोच........
भगवती दुर्गा तो त्रिनेत्रा हैं ......... इसलिए ये ही शैव कुल की परम शक्ति है........ इनका दाहिना नेत्र सूर्य का , बायाँ नेत्र चन्द्र का और त्रिनेत्र तो अग्नि का प्रतीक है........
36 भुवनों का निर्माण जब पराम्बा ने किया तब...... इन सभी 36 भुवनों की व्यवस्था बनाये रखने हेतु वे पराम्बा भगवती राजराजेश्वरी ने भगवती दुर्गा का स्वरुप धारण कर अवतरित हुई
परम अद्भुत नवार्ण मंत्र साधना
: भगवती के श्री श्री चण्डी स्वरुप का नवम आवरण का पुजन विधान अति गोपनीय है......... क्योंकि इसमें श्रीचक्र के जैसे ही चक्रों के नाम, गुण और महाभीषण भैरव सहित श्री चण्डी यंत्रराज के मध्य बिंदु में विराजती हैं
इस साधना के लिए श्री चण्डी यंत्रराज या दश महाविद्या युक्त ब्रह्मांड श्री यंत्र होना चाहिए......
अब पुजन विधान और साधना विधान दे रहा हूँ
श्री श्री चण्डी यंत्रराज में 9 चक्र होते हैं जिनके नाम ये हैं......... त्रैलोक्य मोहन चक्र, सर्वाशा परिपुरक चक्र, सर्व संक्षोभण चक्र, सर्व सौभाग्य दायक चक्र, सर्वार्थ साधक चक्र, सर्व रक्षाकर चक्र, सर्व रोगहर चक्र, सर्व सिद्धिप्रद चक्र और सर्वानन्दमय चक्र
पुजन विधान.......
१. लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठे और अपना मुख उत्तर की ओर और यंत्र के साथ देवी की फोटो पाटे पर स्थापित करें....... देवी का मुख पूर्व दिशा की ओर हो........
२. फिर एक लाल फूल एवं अक्षत लेकर वंदना करते हुए अर्पित करें.......
गुं गुरुभ्यो नमः l गं गणेशाय नमः l ऊँ महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः l
३.फिर गुरु स्तुति करें........
अखंड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् l तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः l
४. फिर निम्न मंत्रों से भस्म को जल में घोलकर मस्तक पर लगाये.......
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्द्धनम् l उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात l
फिर गले में रुद्राक्ष की माला गले में धारण करें
५. फिर निम्न मंत्रों से आचमन करें......
ऐं ह्रीं क्लीं आत्मतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं विद्यातत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
६. फिर शिखा बंधन करें....... फिर हाथ में जल लेकर ये मंत्र बोलकर जल गिरा दें यंत्र के सामने..........
" अद्येत्यादि ममाशेष दुरित क्षयपूर्व कर्मभीष्ट फल प्राप्तयर्थं श्री त्रिशक्ति चामुण्डा प्रीतये साधनां करिष्ये "
इसके बाद 3 बार सिर के ऊपर जल छिड़के
७. फिर बायें पाँव को ३ बार पटकते हुए " ऊँ श्लीं पशु हुं फट् " का वाचन करें
८. अब जो आपके पास जल का कलश है उस पर अपना हाथ रखकर " अमृत मालिन्यै स्वाहा " ३ बार कहें
९. अब पुजा में आने वाले फुलों पर जल छिड़कते हुए ये मंत्र बोलें......
" ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पकेतु राजार्हते शताय सम्यक् समन्धाय ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पे पुष्पे महापुष्पे सुपुष्पे पुष्पभूषिते पुष्पचया वकीर्णे हूँ फट् स्वाहा "
१०. अब चामुण्डा का तंत्रोक्त ध्यान करें........ या देवि सर्वभूतेषु ......... दुर्गा सप्तशती के पुस्तक वाली पुरी स्तुति से........
ध्यान करने के बाद 9 बार " नमश्चण्डिकायै " बोंले
११. निम्न मंत्र पढ़ते हुए लाल पुष्प की पंखुड़ियाँ यंत्र के समीप अर्पित करें........
" ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृत संजीवनि विद्ये मृतमुत्थाप योत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा l ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं l "
इसके बाद अब दुर्गा सप्तशती के पुस्तक में दिए हुए पुरे शाप विमोचन स्तोत्र का पाठ करें
ये है परम गुप्त शाप विमोचन विधि
१२. अब इस मंत्रों को पढ़ते हुए यंत्र के दायें, बायें और ऊपर क्रमशः जल अर्पित करें........
" ऐं ह्रीं क्लीं भं भद्रकाल्यै नमः द्वारस्य दक्ष शाखायां l ऐं ह्रीं क्लीं भं भैरवाय नमः द्वारस्य वाम शाखायां l ऐं ह्रीं क्लीं लं लंबोदराय नमः द्वारस्य ऊर्ध्व शाखायां l वास्तु पुरुषाय नमः
१३. अब ईशान (उत्तर-पूर्व ) दिशा में कुंकुम से त्रिकोण बनाकर ....... उस पर साधारण घी की दीपक स्थापित करें ........ इस मंत्र को बोलते हुए दीपक का पुजन करें....... " ऐं ह्रीं क्लीं रक्तवर्ण द्वादश शक्ति सहिताय दीपनाथाय नमः "
१४. " ऊँ जयध्वनि मंत्र मातः स्वाहा " बोलते हुए घंटा बजाये
१५. अब भैरव की मन ध्यान करके प्रार्थना करें........
" तीक्ष्णदन्त महाकाय कल्पान्त दहनोपम l भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि "
१६. फिर इस " ऊँ रक्ष रक्ष हुं फट् " मंत्र से भूमि पर जल गिराये ........
फिर आसन के नीचे त्रिकोण का निर्माण करके त्रिकोण के मध्य जल से " ह्रीं " लिखें......... और फिर " ऐं ह्रीं क्लीं आधारशक्त्यै नमः " कह कर प्रणाम कर लें ......
अब " गं गणपतये नमः , सं सरस्वत्यै नमः , दुं दुर्गायै नमः , क्षं क्षेत्रपालाय नमः " ........ कहकर भी समस्त देवताओं को प्रणाम करें......
अब आसन को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र बोलें..... " ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता l त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् "
१७. अब दायें हाथ के तर्जनी- अंगुठे को मिलाकर चारों दिशा में घुमायें " ऊँ नमः सुर्दशनाय अस्त्र फट् " मंत्र बोलकर.......
१८. अब दायें हाथ में जल, पुष्प आदि लेकर संकल्प करें........ " ऊँ तत्सत् अद्य विष्णोः आज्ञया पर्वतमानस्य भरत खण्डे अस्मिन् प्रदेशान्तर्गते अस्मिन् पुण्य स्थाने शुभ पुण्य तिथौ .....( अपना नाम बोलें )........ अहं श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रसाद सिद्धिद्वारा मम सर्वाभीष्ट सिध्यर्थं श्री सद्गुरुदेव सान्निध्ये नवार्ण मंत्र साधनाहं करिष्ये
ऐसा संकल्प करके जल को यंत्र पर छोड़ दें
१९. अब अपने बायें तरफ गुरुपादुका मंत्र से संक्षिप्त गुरु पुजन करें........ और दायें तरफ गणपति का पुजन करें
अब गुरु मंत्र की २ माला जप करें और फिर योनि मुद्रा को प्रदर्शित कर के गुरु आदि को प्रणाम करें .......
२०. अब हृदय पर दोनों हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का ध्यान करें इस मंत्र से......
" ऊँ शूलं कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम् "
२१. अब हृदय पर दायाँ हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का हृदय में प्राण प्रतिष्ठा करें इस मंत्र से......
" ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं मम प्राणाः इह प्राणाः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम जीव इह जीवः स्थितः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि l "
अब ३ बार " ह्रीं " से प्राणायाम करें
२२. भूतशुद्धि पुरा पढ़े...... ये स्तोत्र नहीं पुरा का पुरा परम गुप्त मंत्र है ये........ इससे आपके शरीर के संमस्त 7 चक्र जाग्रित हो जाते हैं
" मूलाधार स्थितां स्वेष्ट देवी रुपां विसतन्तु निभां विद्युत प्रभापुंज भासुरां कुण्डलिनीं ध्यात्वा, उत्थाय हृत्कमले संगतां सुषुम्णा वर्त्मना, प्रदीपकलिका कारां जीवकला मादाय , ब्रह्मरन्ध्र गतां स्मरेत् l
ऊँ हंसः सोहं इति मंत्रेण जीव ब्रह्मणि संयोज्य तत्स्थान स्थित भूतानि प्रविलापयेत् l ऊँ भुवं जले प्रविलापयामि जलं अग्नौ, अग्निं वायौ, वायुम् आकाशे, आकाशं अहंकारे, अहंकारं महत्ततत्त्वे , महत्ततत्त्वं प्रकृतौ, प्रकृतिं आत्मनि, आत्मानं च शुद्ध सच्चिदानन्द रुपोहमिति भावयेत् l ततः पाप पुरुषं विचिन्त्य, वाम नासया यं बीजेन षोडश वारमापूर्य रं बीजेन चतुःषष्ठि वारं कुभयित्वा, पुनः यं बीजेन द्वात्रिंशद् वारं रेचकेन भस्मीभूतं पापपुरुषं बहिः निस्सार्य,
पुनः षोडशवारं वायुमापूर्य तद् भस्म अमृत धारयाप्लाव्य, लं बीजेन चतुषष्टि वारं कुंभकेन घनीकृत्य पुनः ईँ बीजेन द्वात्रिंशद् वारं रेचकेन प्राणाद् उत्पाद्य कुण्डलिनी शक्तिं, सोहं इति मंत्रेण परमात्मनः सकाशाद् अमृतमय जीवमादाय हृत्कमले समागतां , तत्र जीवं संस्थाप्य सुषुम्ना मार्गेण मूलाधार गतां चिन्तयेत् "
२३. अब नवार्ण मंत्र साधना की न्यास आदि करेंगे
विनियोग
" ऊँ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्मविष्णु महेश्वरा ऋषयः ........ गायत्री उष्णिक अनुष्टुभः छन्दांसि ......... महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः .......... नन्दजा शाकम्भरी भीमाः शक्तयः .......... रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि.......... ह्रीं कीलकम् ........ अग्निवायुः सूर्याः तत्त्वानि ......... सर्वाभीष्ट मनोकामना सिद्धर्थे जपे विनियोगः "
जल गिराये
२४. ऋष्यादिन्यासः
" ऊँ ब्रह्मविष्णु महेश्वर ऋषिभ्यो नमः शिरसि ........ गायत्री उष्णिक अनुष्टुप् छन्दोभ्यो नमः मुखे......... महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि .......... नन्दजा शाकम्भरी भीमा शक्तिभ्यो नमः दक्षिण स्तने .......... रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामरी बीजेभ्यो नमः वाम स्तने.......... ह्रीं कीलकाय नमः नाभौ........ अग्निवायु सूर्य तत्वेभ्यो नमः हृदि......... विनियोगाय नमः सर्वांगे "
२५. करन्यास
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः .......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं मध्यमाभ्यां नमः ....... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अनामिकाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः l "
२६. हृदयादि षडंन्यासः
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं हृदयाय नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा.......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शिखायै वषट् ....... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कवचाय हुँ ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट् ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अस्त्राय फट् l "
२७. अब इतना करने के बाद पूजापीठ पर अपने बायें भाग में ये मंत्र
" मत्स्य मुद्रा प्रदर्शय त्रिकोण वृत चतुरस्त्रात्मकं मण्डलं कृत्वा तदुपरि कलश स्थापनं करिष्ये "
कहते हुए जल से एक triangle बनाकर उस पर एक तांबे का भरा हुआ कलश स्थापित करें और कलश के ऊपर एक नारियल रखें.......
फिर ये मंत्र बोलकर अक्षत पुष्प कलश पर छोड़े...... " ऐं ह्रीं क्लीं चांमुण्डायै विच्चे कलशमण्डलाय नमः "
२८. फिर कलश के जल में सुगंधित द्रव्य तथा गंध पुष्प डालकर प्रार्थना करें
" कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः l मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ll
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा l ऋग्वेदोथ यजुर्वेदः सामवेदोप्यथर्वणः ll
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशाम्बु समाश्रिताः l सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि च नदा ह्रदाः lआयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षय कारकाः ll
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति l नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु ll "
फिर हाथ में थोड़ा जल लेकर 8 बार मूलमंत्र ( ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) बोलकर वो जल पुजन सामाग्री पर छिड़क दें
+9अब तक न्यास ,कलश स्थापना आदि हो गयी .........
अब आगे बढ़ता हूँ
२९.
षोडशोपचार पुजन
सबसे पहले यंत्र पर निम्न मंत्र पढ़ते हुए चामुण्डा का आह्वाहन करें और एक आचमनी जल यंत्र पर अर्पण करें ............
" ऊँ शूल कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम् ll
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै आह्वाहयामि मम यंत्रे स्थापयामि "
इसके बाद षोडशोपचार प्रारंभ करें
३०. अब जो जो बोला जा रहा है मंत्र में वो यंत्र पर अर्पित करते जायें........ जो सामाग्री ना हो उसके जगह पर जल या लाल अक्षत अर्पित करें
" ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै नमः ........ आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि....... आसनार्थे अक्षतानि समर्पयामि......... पादयोः पाद्यं समर्पयामि......... हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... स्नानीयं जलं समर्पयामि......... सुगंधित तैल्य स्नानं समर्पयामि......... पंचामृत स्नानं समर्पयामि......... गंधोदक स्नानं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... यज्ञोपवीतं समर्पयामि......... चंदनं समर्पयामि......... सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि......... अक्षतान् समर्पयामि......... हरिद्राचूर्णं समर्पयामि......... कुंकुमं समर्पयामि......... सिन्दुरं समर्पयामि......... बिल्व पत्राणि समर्पयामि......... पुष्पमाला समर्पयामि......... धूपं आघ्रयामि.......... दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं समर्पयामि......... ऋतुफलं समर्पयामि......... ताम्बुलं समर्पयामि......... दक्षिणां समर्पयामि......... आरार्त्रिकं समर्पयामि......... प्रदक्षिणां समर्पयामि......... "
३१. अब निम्न श्लोको से क्षमा प्रार्थना करें ......
" एषा भक्त्या तव विरचिता या मया देवि पुजा l स्वीकृत्यैनां सपदि सकलान् मेपराधान् क्षमस्व l
अनया पूजया भगवति श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रीयताम् ll "
जल गिरा दें
३२. अब जिस माला (रुद्राक्ष या मूंगा माला) से आपको मंत्र जाप करना है उसे प्रणाम करके विधिवत मंत्र जाप करना शुरु करें.........
मंत्र जाप खत्म होने के बाद जप भगवती को अर्पुत करें........
नवार्ण साधना का मूलमंत्र है
" ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे "
कुल मंत्र जाप 1200 माला ( 1,25,000 मंत्र संख्या )
प्रत्येक दिन जाप की संख्या बराबर हो तो अच्छा रहेगा
जिसने दीक्षा ले रखी है वो बिना ऊँ लगाये ही जाप कर सकते है और जिनकी दीक्षा नहीं हुई वो " ऊँ " लगाकर ही जाप करें
३३. जब जप खत्म हो जाये तो ये मंत्र पढकर जप को पूर्ण रुप से स्वयं को और मंत्र को भी अर्पित करें ..........
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः ...... समस्त आवरण देवताभ्यो नमः ......... मनसा परिकल्पय पंचोपचार पूजनं समर्पयामि
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले l भक्त्या समर्पये तुभ्यं समस्त आवरण अर्चनम् ll
ऊँ सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु "
जल यंत्र पर अर्पण करें
३४. अब महाआरती करें और प्रसाद ग्रहण करें
और आसन से उठने से पहले आसन के थोड़ा जल डालकर प्रणाम करके उठे 😊
इस प्रकार आपको प्रतिदिन करना है जब तक कि आपका सवा लाख पूर्ण ना हो जायें .........
३५. जब सवा लाख मंत्र पुरा हो जाये तो दशांश हवन, तर्पन, मार्जन, ब्राह्मण या गरीब भोजन........
इस प्रकार ये साधना संपन्न हु
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