आपकी =राशि=स्वामी=रुद्राक्ष=रत्न
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आपके जन्मकुण्डली के अनुसार
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राशि स्वामी रुद्राक्ष रत्न
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मेष मंगल 3मुखी मूंगा
वृष शुक्र 6मुखी जर्किन
मिथुन बुध 4मुखी पन्ना
कर्क चन्द्रमा 2मुखी मोती
सिंह सूर्य 12मुखी माणिक्य
कन्या बुध 4मुखी पन्ना
तुला शुक्र 6मुखी जर्किन
वृश्चिक मंगल 3मुखी मूंगा
धनु गुरु 5मुखी पुखराज
मकर शनि 7मुखी नीलम
कुम्भ शनि 7मुखी नीलम
मीन गुरु 5मुखी पुखराज
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Saturday, 30 April 2016
आपकी =राशि=स्वामी=रुद्राक्ष=रत्न
Friday, 29 April 2016
शुक्र
शुक्र :
शुक्र राक्षस गुरू है तो भोग विलास के कारक है इनकी देवी लक्ष्मी है जिस तरह शनि मृत्यु के देवता है, ये आयु के है यानी मृत सजीवनी के कारक शरीर के अदंर श्वेत रूधिण कणिकाऐ इनके कारक है यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता इनकी कारक हैं । शनि देव इनके परम मित्र है और सूर्य मगंल शत्रु हैं। जन्म कुडंली मे ये जब शनि के साथ होते तो दोनो अधिकतर शुभ फल देते है जिसे लक्ष्मी योग कहते है हम। सुदंरता का प्रतीक है गोरा शरीर, लेकिन आर्कषण के कारक है शुक्र ।
शुक्र शनि की युति यदि लग्न मे हो तो सावंलापन देता है लेकिन आर्कषण अधिक रहता है । शुक्र लोग बदलाव पे भरोषा रखते है हर काम को नये तरीके से करना इनकी खूबी है इसलिए ये डिजाइनर आर्टिस्ट एक्टर माॅडलिगं अपने आप अग्रसर होते है और राजनीति मे भी होते हैं ।
शुभ शुक्र अपनी दशा मे पूरा सुख देता है । बात करे शुक्र प्रधान लोगो की तो ऐसे लोगो का दोस्ताना अधिक होता है लव अफेयर टूटते जुडते रहते है खराब बात ऐ है की किसी के इमोशन इनको बोरिगं लगते है और ये बदलाव करते है यानी नया रिश्ता कायम करने मे इनको थोडा सा भी फर्क नही पडता । ऐसे लोगो की दो या दो से अधिक शादिया भी हो जाती है ।
शुक्र सबसे खराब फल मगंल के साथ और सुर्य के साथ देता है । मगंल के साथ शुक्र बैठा हो एक ही सुख देता है या तो पैसे का या दामपत्य का । मगंल शुक्र की युति 5-9-10 वे घर मे होतो एक अच्छा सर्जन भी बनाता है । ऐसे युति वाले लोगो के सेक्सुअल रिलेशन जरूर बनते रहते है शादी से पहले हो या बाद में । इसका कारण ये भी है की जीवन साथी इनका साथ नही देता हमेशा टकराव या अलगाव रहता है । वही गुरू भी खराब हो और सुर्य केतू से सबंध बने तो शादी के योग नही बनते । अधिक उम्र होने पर शादी होती तो है पर फिर सतांन सुख नही अच्छा मिलता ।
सातवे मगंल या सुर्य से युति मे हो तो कम उम्र शादी के योग बना देता है सतांन सुख भी देगा पर पति से सबंध खराब करेगा माॅ और बच्चा तो साथ होगा पर पति नही या पत्नी नही वो दूसरे मे खुश रहते है । अब यदि शादी नही जल्दी हुई तो रिश्ते आते रहेगे पर कोई जवाब नही आऐगा । जिनकी कुडंली मे सुर्य शुक्र साथ हो ऐसे को दिन के समय सबंध नही बनाना चाहिए पत्नी बिमार रहने लगती है ।जिनकी कुडंली मे शुक्र शनी एक साथ खराब हालाद मे होगे तो ऐसे जातक का बैकं लोन नही उतरता उल्टा काम के लिए उसे बार बार कर्ज लेना पडता है बैकं लोन की ओर अधिक झुकाव हो जाता है और यदि दशा शुरू हो जाए तो बिमारी पर भी पैसा लगने लगता है । यदि सूर्य से सबंध बने 11-12 भाव में तो पिता को गभीर रोग देगा या मृत्यु पैरालाइस से हृदय घात से होती है । साधारणतः ऐसे लोगो के पिता को शुगर रहती है या आखो के रोग देता है ।
खराब शुक्र वाला जातक का चेहरा मुरझाया रहता है चितां में खोया रहता है लोगो से बात करने हिचकिचाता रहता है । डर लगता है उसको वो कभी कभी अपने साऐ से भी डर जाता है । लग्नेश हो और 6-8 मे बैठ जाए तो उसको कोई न कोई बिमारी लगी रहती है ऐसे जातक को हर छोटे छोटे शौक के पूरे करने के लिए कडी मेहनत करनी पडती है ।
आज की ऐस्ट्रो टिप-----यदि बार बार आर्थिक तंगी आती हो तो रोज लक्ष्मी नरायण जी के मदिंर जाए सफेद फूलो की माला या सफेद कमल उनको अर्पित करे पति पत्नी साथ जायें। जिन लडकियो की नई शादी हुई हो उनको कांच वाली सेटं की बोतल दान दे । इससे जल्दी शुक्र मजबूत होते हैं ।🙏🙏🙏🙏
दवाई को अभिमंत्रित करके लेने का मंत्र:-
दवाई को अभिमंत्रित करके लेने का मंत्र:-
ॐ नमो महाविनायकाय अमृतं रक्ष रक्ष मम फल सिद्धि देहि रूद्र वचनेन स्वाहा।
प्रयोग विधि:-
इस मंत्र को बोल कर श्री गणेश जी पर आस्था बनाते हुए दवाई पर फूंक मारें।
फिर दवाई का सेवन करें।
अब गुदा प्रक्षालन का मंत्र देता हूँ आपको
औषधियाँ
बैद्यनाथ की शम्बुकादि बटी, गिलोय सत्व, कंकायन बटी(अर्श),अभ्यारिष्ट, त्रिफला गुग्गुलू त्रिप्लारिष्ट के साथ।
ज्योतिष द्वारा चोरी गयी वस्तू का ज्ञान
ज्योतिष द्वारा चोरी गयी वस्तू का ज्ञान ...
कभी -कभी घरों में छोटी मोटी चोरी की घटना घट जाती है। तब एक छट -पटाहट सी रहती है ,चोर कौन हो सकता है। ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता प्रश्न कुंडली से लगाया जाता है।
जब भी चोरी का पता लगता है उस समय को नोट कर लीजिये। अगर किसी को जन्मकुंडली देखने का ज्ञान है तो ठीक है नहीं तो किसी भी ज्योतिष के पास समय को बता कर समस्या का समाधान किया जा सकता है।
चोरी होने की सूचना मिलते ही तुरंत प्रश्न कुंडली बनायें।
मेष या वृषभ लग्न ----पूर्व दिशा
मिथुन लग्न ----- अग्नि कोण
कर्क लग्न ---- दक्षिण
सिंह लग्न ------------ नैरित्य कोण
कन्या लग्न --------- उत्तर दिशा
तुला और वृश्चिक लग्न -- पश्चिम दिशा
धनु लग्न ------------ वायव्य कोण
मकर और कुम्भ लग्न ---उत्तर दिशा
मीन लग्न ------------इशान कोण
उपरोक्त लग्नो में खोयी वस्तु ,उसके दिखाए गए लग्नो के सामने की दिशा में गयी है।
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अब सवाल उठता है चोरी करने वाला कौन हो सकता है तो नीचे लिखे लग्नो के आधार पर पता लगाया जा सकता है।
मेष लग्न ---ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष
वृषभ लग्न--क्षत्रिय
मिथुन लग्न -----वेश्य
कर्क लग्न -------शुद्र या सेवक वर्ग
सिंह लग्न ------स्वजन या आत्मीय व्यक्ति
कन्या लग्न---- कुलीन स्त्री ,घर की बहू -बेटी या बहन
तुला लग्न ----पुत्र ,भाई या जमाता
वृश्चिक लग्न-- इतर जाति का व्यक्ति
धनु लग्न ---स्त्री
मकर लग्न ---वेश्य या व्यापारी
कुम्भ लग्न---चूहा
मीन लग्न----खोयी घर में ही पड़ी है कहीं ( मिस-प्लेस )
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यह सब जानने के बाद यह भी प्रश्न उठता है , जो सामान चोरी हुआ है वह मिलेगा या नहीं ? इसके लिए प्रश्न कुंडली में चंद्रमा की स्थिति देखी जाती है। यहाँ पर चंद्रमा को मालिक और सातवें भाव को चोर माना जाता है।चौथे भाव को धन -प्राप्ति की जगह और लग्न -भाव को चोरी गया सामान माना जाता है।
1) लग्न -भाव का स्वामी अगर सातवें घर या उसके स्वामी के साथ हो तो कोशिश करने पर चोरी गया धन मिल जाता है।
2)अगर लग्न -भाव का स्वामी अष्ठम में हो तो चोर खुद ही चोरी की गयी वस्तु लौटा देगा।लेकिन ग्रह अस्त होगा तो चोरी का पता चलेगा पर वस्तु नहीं मिलेगी।
3)लग्न-भाव का स्वामी दसवें घर के स्वानी के साथ है तो चोर माल सहित पकड़ा जायेगा।
4) अगर लग्नेश की दृष्टि दसवें घर के स्वामी पर नहीं पद रही हो तो चोरी गयी वस्तु नहीं मिलेगी।
5)अगर सातवें घर का स्वामी सूर्य के साथ अस्त हो तो बहुत समय बाद चोर का तो पता चल जायेगा पर वास्तु नहीं मिलेगी।
6)अगर सप्तमेश और लग्नेश साथ में हो तो चोर राज भय से डर कर खुद ही माल को दे देता है।
7)अगर सप्तमेश पर लग्नेश की दृष्टि ना पड़ रही हो तो ना चोर को लाभ लाभ होता है ना मालिक को ,माल को मध्यस्थ ही हड़प लेता है।
8)प्रश्न कुंडली में अष्ठम भाव चोर के धन रखने का स्थान होता है इसलिए अगर धन भाव का स्वामी अष्ठम में ही बैठा हो तो माल नहीं मिलेगा।और अगर धन भाव का स्वामी सप्तम में हो तो भी माल नहीं मिलता क्यूँ कि "चंद्रास्वामी चोर सप्तम " के अनुसार सप्तम भाव स्वयं चोर है।
9) धनेश अगर अष्टमेश के साथ हो तो धन मिल जाता है।
10) अगर अष्टमेश ,दशमेश के साथ हो तो राज-पुरुष चोर का पक्षपाती ही माल नहीं मिलेगा।
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अब चोरी हुई वस्तु कहाँ छिपाई गयी है इस पर विचार करते हैं।
1) लग्नेश और सप्तमेश का आपस में परिवर्तन या दोनों एक ही भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।
2) चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होगी और अगर सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी।चंद्रमा अगर दशम ने हो तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु उत्तर दिशा में मिलेगी।
3) अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष ,सिंह ,धनु ) हो तो वस्तु घर के पूर्व,अग्नि -स्थान , रसोई घर में ही मिल जाती है।
4 ) लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ ,कन्या ,मकर ) हो तो वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।
5 ) अगर लग्न में वायु -तत्व राशि ( मिथुन ,तुला कुम्भ ) हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।
6 )लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क ,वृश्चिक ,कुम्भ ) हो तो वस्तु जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी।
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ग्रहों के हिसाब से चोर कौन है और कितनी उम्र का है ये भी पता लगाने की कोशिश करते हैं।
1) प्रश्न -कुंडली में यदि लग्न पर सूर्य-चन्द्र दोनों की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु किसी घर के व्यक्ति ने ही चुराई है।और यदि लग्नेश ,सप्तमेश से युक्त हो कर लग्न में हो तो भी चोरी किसी घर के व्यक्ति ने ही की है।
2)लग्न पर सूर्य या चन्द्र किसी एक ही की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु किसी आस पास रहने वाले व्यक्ति ने चुराई है।
3)अगर सप्तमेश द्वादश या तृतीय स्थान में हो तो घर के नौकर ने चोरी की है।
4 )अगर सप्तमेश स्वग्रही या अपनी उच्च राशि में हो तो चोरी पेशेवर चोर ने की है। यहाँ पर चोर की शक्ति का ज्ञान लग्न,सप्तम और दशम भाव के बल के अनुसार करना चाहिए।
5) प्रश्न -कुंडली में अगर सूर्य बलवान हो तो पिता या पितातुल्य व्यक्ति ,चंद्रमा बलि हो तो माँ या मातातुल्य महिला ,शुक्र बली हो तो महिला ,वृहस्पति बलि हो तो घर के मालिक ने ,शनि बलि हो तो पुत्र ने और मंगल बलि हो तो भाई या सगा भतीजा तथा बुध बलवान हो तो मित्र या मित्र -सम्बन्धियों ने चोरी की है।
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लग्न में अगर शुक्र ----युवक
बुध ---बालक
गुरु -----वृद्ध
मंगल--युवक
शनि -वृद्ध चोर है।
लग्न और दशम भाव के मध्य सूर्य है तो चोर बालक है। दशम भाव और सप्तम भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर युवक है। लग्न और चतुर्थ भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर अत्यंत वृद्ध है।
दत्तात्रेय मंत्र साधना
दत्तात्रेय मंत्र साधना.
श्री दत्तात्रेय याने अत्रि ऋषि और अनुसूया की तपस्या का प्रसाद ..." दत्तात्रेय " शब्द , दत्त + अत्रेय की संधि से बना है। त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद “ दत्त “ ... अर्थात दत्तात्रेय l दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था। श्री गुरुदेव दत्त , भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्न होकर स्मरण करने समस्त विपदाओं से रक्षा करते हैं।औदुंबर अर्थात ‘ गूलर वृक्ष ‘ दत्तात्रय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है,इसी वृक्ष मे दत्त तत्व अधिक है। भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की साधना अत्यंत ही सफ़ल और शीघ्र फ़ल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे ,वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है l यदि मानसिक रूप से , कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो साधकों को शीघ्र ही प्रसन्न होते है l दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ' परब्रह्ममूर्ति सदगुरु ' और ' श्री गुरुदेव दत्त ' भी कहा जाता है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है। वे श्री हरि विष्णु का अवतार हैं। वे पालनकर्ता, त्राता और भक्त वत्सल हैं तो भक्ताभिमानी भी।
साधना विधि:-
गुरुवार और हर पूर्णिमा की शाम भगवान दत्त की उपासना में विशेष मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ माना गया है।इसलिये जितना ज्यादा मंत्र जाप कर सकते है करना चाहिये l मंत्र जाप से पूर्व शुद्धता का ध्यान विशेष रुप से रखिये और हो सके तो स्फटिक माला से रोज दोनो मंत्र का एक माला मंत्र जाप करे l
ध्यान-
" जटाधाराम पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम।
सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥"
दत्त गायत्री मंत्र-
ll ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात ll
तांत्रोत्क दत्तत्रेय मंत्र-
ll ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम: ll
(om draam dattatreyaay namah)
दत्तात्रेय की उपासना ज्ञान, बुद्धि, बल प्रदान करने के साथ शत्रु बाधा दूर कर कार्य में सफलता और मनचाहे परिणामों को देने वाली मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय भक्त की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होकर किसी भी रूप में उसकी कामनापूर्ति या संकटनाश करते है
रोगी का लिए
प्रयोग विधि:-
अनार की कलम से भोजपत्र पर लाल चन्दन या रोली से
ॐ शों
शोकविनाशिनीभ्यां नमः मंत्र को लिखे।
फिर इस मंत्र के नीचे अपने पति का नाम लिखें।
भोजपत्र को शहद की शीशी में डुबाकर रख दें।
शीशी हनुमान जी की फोटो या मूर्ति के पास रखे।
और
मंगलवार(शुक्ल पक्ष) को माँ दुर्गा जी की प्रतिमा के सामने शुद्ध देसी घी का दीपक जलाकर, एक कटोरी जल में 4 छोटी इलायची डालकर इस मंत्र का लाभ न मिलने तक रोज़ 108 बार रुद्राक्ष माला से जाप करें।
लाभ होने पर माँ वैष्णों देवी के दर्शन अवश्य करें।
लाल चुन्नी, चूड़ियाँ व छत्र अवश्य माँ को सप्रेम भेंट करें।
परम गोपनीय परमेश्वरी चण्डी का अति गुप्त रहस्य का वर्णन
आपलोग के लिए पहली बार परम गोपनीय परमेश्वरी चण्डी का अति गुप्त रहस्य का वर्णन करना चाहता हूँ जो मुझे गुरु कृपा से प्राप्त हुआ है
भगवती दुर्गा के बारे में हमारे कुछ अवर्णनीय सोच........
भगवती दुर्गा तो त्रिनेत्रा हैं ......... इसलिए ये ही शैव कुल की परम शक्ति है........ इनका दाहिना नेत्र सूर्य का , बायाँ नेत्र चन्द्र का और त्रिनेत्र तो अग्नि का प्रतीक है........
36 भुवनों का निर्माण जब पराम्बा ने किया तब...... इन सभी 36 भुवनों की व्यवस्था बनाये रखने हेतु वे पराम्बा भगवती राजराजेश्वरी ने भगवती दुर्गा का स्वरुप धारण कर अवतरित हुई
परम अद्भुत नवार्ण मंत्र साधना
: भगवती के श्री श्री चण्डी स्वरुप का नवम आवरण का पुजन विधान अति गोपनीय है......... क्योंकि इसमें श्रीचक्र के जैसे ही चक्रों के नाम, गुण और महाभीषण भैरव सहित श्री चण्डी यंत्रराज के मध्य बिंदु में विराजती हैं
इस साधना के लिए श्री चण्डी यंत्रराज या दश महाविद्या युक्त ब्रह्मांड श्री यंत्र होना चाहिए......
अब पुजन विधान और साधना विधान दे रहा हूँ
श्री श्री चण्डी यंत्रराज में 9 चक्र होते हैं जिनके नाम ये हैं......... त्रैलोक्य मोहन चक्र, सर्वाशा परिपुरक चक्र, सर्व संक्षोभण चक्र, सर्व सौभाग्य दायक चक्र, सर्वार्थ साधक चक्र, सर्व रक्षाकर चक्र, सर्व रोगहर चक्र, सर्व सिद्धिप्रद चक्र और सर्वानन्दमय चक्र
पुजन विधान.......
१. लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठे और अपना मुख उत्तर की ओर और यंत्र के साथ देवी की फोटो पाटे पर स्थापित करें....... देवी का मुख पूर्व दिशा की ओर हो........
२. फिर एक लाल फूल एवं अक्षत लेकर वंदना करते हुए अर्पित करें.......
गुं गुरुभ्यो नमः l गं गणेशाय नमः l ऊँ महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः l
३.फिर गुरु स्तुति करें........
अखंड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् l तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः l
४. फिर निम्न मंत्रों से भस्म को जल में घोलकर मस्तक पर लगाये.......
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्द्धनम् l उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात l
फिर गले में रुद्राक्ष की माला गले में धारण करें
५. फिर निम्न मंत्रों से आचमन करें......
ऐं ह्रीं क्लीं आत्मतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं विद्यातत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
६. फिर शिखा बंधन करें....... फिर हाथ में जल लेकर ये मंत्र बोलकर जल गिरा दें यंत्र के सामने..........
" अद्येत्यादि ममाशेष दुरित क्षयपूर्व कर्मभीष्ट फल प्राप्तयर्थं श्री त्रिशक्ति चामुण्डा प्रीतये साधनां करिष्ये "
इसके बाद 3 बार सिर के ऊपर जल छिड़के
७. फिर बायें पाँव को ३ बार पटकते हुए " ऊँ श्लीं पशु हुं फट् " का वाचन करें
८. अब जो आपके पास जल का कलश है उस पर अपना हाथ रखकर " अमृत मालिन्यै स्वाहा " ३ बार कहें
९. अब पुजा में आने वाले फुलों पर जल छिड़कते हुए ये मंत्र बोलें......
" ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पकेतु राजार्हते शताय सम्यक् समन्धाय ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पे पुष्पे महापुष्पे सुपुष्पे पुष्पभूषिते पुष्पचया वकीर्णे हूँ फट् स्वाहा "
१०. अब चामुण्डा का तंत्रोक्त ध्यान करें........ या देवि सर्वभूतेषु ......... दुर्गा सप्तशती के पुस्तक वाली पुरी स्तुति से........
ध्यान करने के बाद 9 बार " नमश्चण्डिकायै " बोंले
११. निम्न मंत्र पढ़ते हुए लाल पुष्प की पंखुड़ियाँ यंत्र के समीप अर्पित करें........
" ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृत संजीवनि विद्ये मृतमुत्थाप योत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा l ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं l "
इसके बाद अब दुर्गा सप्तशती के पुस्तक में दिए हुए पुरे शाप विमोचन स्तोत्र का पाठ करें
ये है परम गुप्त शाप विमोचन विधि
१२. अब इस मंत्रों को पढ़ते हुए यंत्र के दायें, बायें और ऊपर क्रमशः जल अर्पित करें........
" ऐं ह्रीं क्लीं भं भद्रकाल्यै नमः द्वारस्य दक्ष शाखायां l ऐं ह्रीं क्लीं भं भैरवाय नमः द्वारस्य वाम शाखायां l ऐं ह्रीं क्लीं लं लंबोदराय नमः द्वारस्य ऊर्ध्व शाखायां l वास्तु पुरुषाय नमः
१३. अब ईशान (उत्तर-पूर्व ) दिशा में कुंकुम से त्रिकोण बनाकर ....... उस पर साधारण घी की दीपक स्थापित करें ........ इस मंत्र को बोलते हुए दीपक का पुजन करें....... " ऐं ह्रीं क्लीं रक्तवर्ण द्वादश शक्ति सहिताय दीपनाथाय नमः "
१४. " ऊँ जयध्वनि मंत्र मातः स्वाहा " बोलते हुए घंटा बजाये
१५. अब भैरव की मन ध्यान करके प्रार्थना करें........
" तीक्ष्णदन्त महाकाय कल्पान्त दहनोपम l भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि "
१६. फिर इस " ऊँ रक्ष रक्ष हुं फट् " मंत्र से भूमि पर जल गिराये ........
फिर आसन के नीचे त्रिकोण का निर्माण करके त्रिकोण के मध्य जल से " ह्रीं " लिखें......... और फिर " ऐं ह्रीं क्लीं आधारशक्त्यै नमः " कह कर प्रणाम कर लें ......
अब " गं गणपतये नमः , सं सरस्वत्यै नमः , दुं दुर्गायै नमः , क्षं क्षेत्रपालाय नमः " ........ कहकर भी समस्त देवताओं को प्रणाम करें......
अब आसन को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र बोलें..... " ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता l त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् "
१७. अब दायें हाथ के तर्जनी- अंगुठे को मिलाकर चारों दिशा में घुमायें " ऊँ नमः सुर्दशनाय अस्त्र फट् " मंत्र बोलकर.......
१८. अब दायें हाथ में जल, पुष्प आदि लेकर संकल्प करें........ " ऊँ तत्सत् अद्य विष्णोः आज्ञया पर्वतमानस्य भरत खण्डे अस्मिन् प्रदेशान्तर्गते अस्मिन् पुण्य स्थाने शुभ पुण्य तिथौ .....( अपना नाम बोलें )........ अहं श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रसाद सिद्धिद्वारा मम सर्वाभीष्ट सिध्यर्थं श्री सद्गुरुदेव सान्निध्ये नवार्ण मंत्र साधनाहं करिष्ये
ऐसा संकल्प करके जल को यंत्र पर छोड़ दें
१९. अब अपने बायें तरफ गुरुपादुका मंत्र से संक्षिप्त गुरु पुजन करें........ और दायें तरफ गणपति का पुजन करें
अब गुरु मंत्र की २ माला जप करें और फिर योनि मुद्रा को प्रदर्शित कर के गुरु आदि को प्रणाम करें .......
२०. अब हृदय पर दोनों हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का ध्यान करें इस मंत्र से......
" ऊँ शूलं कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम् "
२१. अब हृदय पर दायाँ हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का हृदय में प्राण प्रतिष्ठा करें इस मंत्र से......
" ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं मम प्राणाः इह प्राणाः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम जीव इह जीवः स्थितः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि l "
अब ३ बार " ह्रीं " से प्राणायाम करें
२२. भूतशुद्धि पुरा पढ़े...... ये स्तोत्र नहीं पुरा का पुरा परम गुप्त मंत्र है ये........ इससे आपके शरीर के संमस्त 7 चक्र जाग्रित हो जाते हैं
" मूलाधार स्थितां स्वेष्ट देवी रुपां विसतन्तु निभां विद्युत प्रभापुंज भासुरां कुण्डलिनीं ध्यात्वा, उत्थाय हृत्कमले संगतां सुषुम्णा वर्त्मना, प्रदीपकलिका कारां जीवकला मादाय , ब्रह्मरन्ध्र गतां स्मरेत् l
ऊँ हंसः सोहं इति मंत्रेण जीव ब्रह्मणि संयोज्य तत्स्थान स्थित भूतानि प्रविलापयेत् l ऊँ भुवं जले प्रविलापयामि जलं अग्नौ, अग्निं वायौ, वायुम् आकाशे, आकाशं अहंकारे, अहंकारं महत्ततत्त्वे , महत्ततत्त्वं प्रकृतौ, प्रकृतिं आत्मनि, आत्मानं च शुद्ध सच्चिदानन्द रुपोहमिति भावयेत् l ततः पाप पुरुषं विचिन्त्य, वाम नासया यं बीजेन षोडश वारमापूर्य रं बीजेन चतुःषष्ठि वारं कुभयित्वा, पुनः यं बीजेन द्वात्रिंशद् वारं रेचकेन भस्मीभूतं पापपुरुषं बहिः निस्सार्य,
पुनः षोडशवारं वायुमापूर्य तद् भस्म अमृत धारयाप्लाव्य, लं बीजेन चतुषष्टि वारं कुंभकेन घनीकृत्य पुनः ईँ बीजेन द्वात्रिंशद् वारं रेचकेन प्राणाद् उत्पाद्य कुण्डलिनी शक्तिं, सोहं इति मंत्रेण परमात्मनः सकाशाद् अमृतमय जीवमादाय हृत्कमले समागतां , तत्र जीवं संस्थाप्य सुषुम्ना मार्गेण मूलाधार गतां चिन्तयेत् "
२३. अब नवार्ण मंत्र साधना की न्यास आदि करेंगे
विनियोग
" ऊँ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्मविष्णु महेश्वरा ऋषयः ........ गायत्री उष्णिक अनुष्टुभः छन्दांसि ......... महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः .......... नन्दजा शाकम्भरी भीमाः शक्तयः .......... रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि.......... ह्रीं कीलकम् ........ अग्निवायुः सूर्याः तत्त्वानि ......... सर्वाभीष्ट मनोकामना सिद्धर्थे जपे विनियोगः "
जल गिराये
२४. ऋष्यादिन्यासः
" ऊँ ब्रह्मविष्णु महेश्वर ऋषिभ्यो नमः शिरसि ........ गायत्री उष्णिक अनुष्टुप् छन्दोभ्यो नमः मुखे......... महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि .......... नन्दजा शाकम्भरी भीमा शक्तिभ्यो नमः दक्षिण स्तने .......... रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामरी बीजेभ्यो नमः वाम स्तने.......... ह्रीं कीलकाय नमः नाभौ........ अग्निवायु सूर्य तत्वेभ्यो नमः हृदि......... विनियोगाय नमः सर्वांगे "
२५. करन्यास
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः .......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं मध्यमाभ्यां नमः ....... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अनामिकाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः l "
२६. हृदयादि षडंन्यासः
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं हृदयाय नमः ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा.......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शिखायै वषट् ....... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कवचाय हुँ ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट् ......... ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अस्त्राय फट् l "
२७. अब इतना करने के बाद पूजापीठ पर अपने बायें भाग में ये मंत्र
" मत्स्य मुद्रा प्रदर्शय त्रिकोण वृत चतुरस्त्रात्मकं मण्डलं कृत्वा तदुपरि कलश स्थापनं करिष्ये "
कहते हुए जल से एक triangle बनाकर उस पर एक तांबे का भरा हुआ कलश स्थापित करें और कलश के ऊपर एक नारियल रखें.......
फिर ये मंत्र बोलकर अक्षत पुष्प कलश पर छोड़े...... " ऐं ह्रीं क्लीं चांमुण्डायै विच्चे कलशमण्डलाय नमः "
२८. फिर कलश के जल में सुगंधित द्रव्य तथा गंध पुष्प डालकर प्रार्थना करें
" कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः l मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ll
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा l ऋग्वेदोथ यजुर्वेदः सामवेदोप्यथर्वणः ll
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशाम्बु समाश्रिताः l सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि च नदा ह्रदाः lआयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षय कारकाः ll
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति l नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु ll "
फिर हाथ में थोड़ा जल लेकर 8 बार मूलमंत्र ( ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) बोलकर वो जल पुजन सामाग्री पर छिड़क दें
+9अब तक न्यास ,कलश स्थापना आदि हो गयी .........
अब आगे बढ़ता हूँ
२९.
षोडशोपचार पुजन
सबसे पहले यंत्र पर निम्न मंत्र पढ़ते हुए चामुण्डा का आह्वाहन करें और एक आचमनी जल यंत्र पर अर्पण करें ............
" ऊँ शूल कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम् ll
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै आह्वाहयामि मम यंत्रे स्थापयामि "
इसके बाद षोडशोपचार प्रारंभ करें
३०. अब जो जो बोला जा रहा है मंत्र में वो यंत्र पर अर्पित करते जायें........ जो सामाग्री ना हो उसके जगह पर जल या लाल अक्षत अर्पित करें
" ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै नमः ........ आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि....... आसनार्थे अक्षतानि समर्पयामि......... पादयोः पाद्यं समर्पयामि......... हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... स्नानीयं जलं समर्पयामि......... सुगंधित तैल्य स्नानं समर्पयामि......... पंचामृत स्नानं समर्पयामि......... गंधोदक स्नानं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि......... आचमनीयं समर्पयामि......... यज्ञोपवीतं समर्पयामि......... चंदनं समर्पयामि......... सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि......... अक्षतान् समर्पयामि......... हरिद्राचूर्णं समर्पयामि......... कुंकुमं समर्पयामि......... सिन्दुरं समर्पयामि......... बिल्व पत्राणि समर्पयामि......... पुष्पमाला समर्पयामि......... धूपं आघ्रयामि.......... दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं समर्पयामि......... ऋतुफलं समर्पयामि......... ताम्बुलं समर्पयामि......... दक्षिणां समर्पयामि......... आरार्त्रिकं समर्पयामि......... प्रदक्षिणां समर्पयामि......... "
३१. अब निम्न श्लोको से क्षमा प्रार्थना करें ......
" एषा भक्त्या तव विरचिता या मया देवि पुजा l स्वीकृत्यैनां सपदि सकलान् मेपराधान् क्षमस्व l
अनया पूजया भगवति श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रीयताम् ll "
जल गिरा दें
३२. अब जिस माला (रुद्राक्ष या मूंगा माला) से आपको मंत्र जाप करना है उसे प्रणाम करके विधिवत मंत्र जाप करना शुरु करें.........
मंत्र जाप खत्म होने के बाद जप भगवती को अर्पुत करें........
नवार्ण साधना का मूलमंत्र है
" ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे "
कुल मंत्र जाप 1200 माला ( 1,25,000 मंत्र संख्या )
प्रत्येक दिन जाप की संख्या बराबर हो तो अच्छा रहेगा
जिसने दीक्षा ले रखी है वो बिना ऊँ लगाये ही जाप कर सकते है और जिनकी दीक्षा नहीं हुई वो " ऊँ " लगाकर ही जाप करें
३३. जब जप खत्म हो जाये तो ये मंत्र पढकर जप को पूर्ण रुप से स्वयं को और मंत्र को भी अर्पित करें ..........
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः ...... समस्त आवरण देवताभ्यो नमः ......... मनसा परिकल्पय पंचोपचार पूजनं समर्पयामि
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले l भक्त्या समर्पये तुभ्यं समस्त आवरण अर्चनम् ll
ऊँ सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु "
जल यंत्र पर अर्पण करें
३४. अब महाआरती करें और प्रसाद ग्रहण करें
और आसन से उठने से पहले आसन के थोड़ा जल डालकर प्रणाम करके उठे 😊
इस प्रकार आपको प्रतिदिन करना है जब तक कि आपका सवा लाख पूर्ण ना हो जायें .........
३५. जब सवा लाख मंत्र पुरा हो जाये तो दशांश हवन, तर्पन, मार्जन, ब्राह्मण या गरीब भोजन........
इस प्रकार ये साधना संपन्न हु