ॐ गुरवे नमः......आज आपकी आपसे ही मुलाक़ात करानी है.....कई सारे साथियों के सवालों से अपनी बात करुगा....कई सारे साथी सुझाव कुछ इस तरह से मांगते है.....में बहुत परेशां हूँ...हमेशा डर बना रहता है.....जो काम कर रहा हूँ उसमे मन ही नहीं लगता....खूब मेहनत करता हूँ पर कमाई नजर ही नहीं आती...बच्चो के भविष्य को लेकर परेशां हूँ.....सेहत हमेशा ख़राब ही रहती है....घर में नेगेटिव उर्जा है.....किसी में कुछ कर दिया है.....परिवार में रिश्ते बिखराव पर है.....अब तो जीने की तमन्ना ही ख़त्म हो गयी है.....ऐसे सवाल आपके भी हो सकते है......समाधान इनका सबको चाहिए.....आज इन्ही से जुड़े समाधानों पर थोड़ी थोड़ी बात करेगे.....आपसे इतना अनुरोध है.....की इस पोस्ट पर थोडा समय दे.....यह पोस्ट नहीं जीवन आनंद का पथ है......समझना ही साधना पथ का पहला कदम होगा.......
आपसे इतना पूछना चाहते है कि आखिर यह सवाल कहा से आते है.....नकारात्मकता के बीज का केन्द्र कहा है.....क्यों सब कुछ ठीक ठाक होने के बावजूद अनजाना डर आता है.....कहा से इनकी उपज होती है......
साथियों ....बात शरीर से करेगे.....जो इस शरीर को ही अपना वजूद मानते है....सारी यात्रा शरीर से शुरू और शरीर से ख़त्म...ऐसे में बाहर से ही हम जुड़े रहते है....हमारी ख़ुशी और गम के केन्द्र बाहर ही होते है....दोस्त, परिवार, काम काज सब बाहर की दुनिया है....किसी ने कुछ कहा तो नाराज.....किसी ने कुछ कहा तो खुश.....ऐसे में एक वक्त ऐसा आता है की दर्द, डर, सेहत में गिरावट, सम्पति में संकट, दरकते रिश्ते हमें तोड़ देते है......
अक्सर इस तरह की तकलीफ में जब हम होते है.....तो आपने देखा होगा की अशांति के बीच भी हमें एक पल के लिए लड़ने की ....सब ठीक होने की प्रेरणा अपने भीतर से मिलती है.....पर डर और दर्द शरीर का इतना हावी होता है कि हम भीतर की बात को सुनी अनसुनी कर देते है......
आपको इतना लंबा ले जाकर समझाने का भाव यही था की बात भीतर तक उतरे.....यह भीतर क्या है और किसने हमें सही रास्ता दिखाने की नसीहत दी....साथियों सच में शरीर तो एक माध्यम मात्र है....सब कुछ संचालन भीतर से ही होता है......बाहर तो दर्द है..डर है.....
भीतर की आवाज यानि हमारे कारण शरीर की पुकार....यही आत्मा है.....और इन दोनों के बीच की कड़ी है सूक्ष्म शरीर यानि मन.....
इन सब को समझने के लिए आप हमारी अगली पोस्ट का इन्तजार करे.....अधूरी है....लिखी अधूरी ही है....धीरे धीरे समझना है.....आप तनिक भी जल्दबाजी न करे.....यह आपके जीवन पथ को नयी दिशा देने का सेतू बनेगी...अगली पोस्ट में ध्यान साधना और आनंद पथ से जुडेगे......आपसे अनुरोध है की अगली पोस्ट से पहले अपने सभी साथियों को इस पोस्ट से जोड़े.....आप हमसे अपनी बात भी कह सकते है....ॐ गुरवे नमः ....ॐ गुरवे नमः...आशीर्वाद ..जगदगुरु की कृपा आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे..
आपसे इतना पूछना चाहते है कि आखिर यह सवाल कहा से आते है.....नकारात्मकता के बीज का केन्द्र कहा है.....क्यों सब कुछ ठीक ठाक होने के बावजूद अनजाना डर आता है.....कहा से इनकी उपज होती है......
साथियों ....बात शरीर से करेगे.....जो इस शरीर को ही अपना वजूद मानते है....सारी यात्रा शरीर से शुरू और शरीर से ख़त्म...ऐसे में बाहर से ही हम जुड़े रहते है....हमारी ख़ुशी और गम के केन्द्र बाहर ही होते है....दोस्त, परिवार, काम काज सब बाहर की दुनिया है....किसी ने कुछ कहा तो नाराज.....किसी ने कुछ कहा तो खुश.....ऐसे में एक वक्त ऐसा आता है की दर्द, डर, सेहत में गिरावट, सम्पति में संकट, दरकते रिश्ते हमें तोड़ देते है......
अक्सर इस तरह की तकलीफ में जब हम होते है.....तो आपने देखा होगा की अशांति के बीच भी हमें एक पल के लिए लड़ने की ....सब ठीक होने की प्रेरणा अपने भीतर से मिलती है.....पर डर और दर्द शरीर का इतना हावी होता है कि हम भीतर की बात को सुनी अनसुनी कर देते है......
आपको इतना लंबा ले जाकर समझाने का भाव यही था की बात भीतर तक उतरे.....यह भीतर क्या है और किसने हमें सही रास्ता दिखाने की नसीहत दी....साथियों सच में शरीर तो एक माध्यम मात्र है....सब कुछ संचालन भीतर से ही होता है......बाहर तो दर्द है..डर है.....
भीतर की आवाज यानि हमारे कारण शरीर की पुकार....यही आत्मा है.....और इन दोनों के बीच की कड़ी है सूक्ष्म शरीर यानि मन.....
इन सब को समझने के लिए आप हमारी अगली पोस्ट का इन्तजार करे.....अधूरी है....लिखी अधूरी ही है....धीरे धीरे समझना है.....आप तनिक भी जल्दबाजी न करे.....यह आपके जीवन पथ को नयी दिशा देने का सेतू बनेगी...अगली पोस्ट में ध्यान साधना और आनंद पथ से जुडेगे......आपसे अनुरोध है की अगली पोस्ट से पहले अपने सभी साथियों को इस पोस्ट से जोड़े.....आप हमसे अपनी बात भी कह सकते है....ॐ गुरवे नमः ....ॐ गुरवे नमः...आशीर्वाद ..जगदगुरु की कृपा आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे..
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