Tuesday, 23 June 2015

Graho ka upay

सूर्य के उपाय

दान— गाय का दान बछड़े समेत, गुड़, सोना, तांबा और गेहूं सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में ४० से ५० वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है. सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए। रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए। ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है। लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए। किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए। हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए। लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए। सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

—-क्या न करें— आपका सूर्य कमज़ोर अथवा नीच का होकर आपको परेशान कर रहा है अथवा किसी कारण सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको गेहूं और गुड़ का सेव न न करें

शनि के उपाय

जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित है उन्हें काली गाय का दान करना चाहिए. काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का दान करना चाहिए. शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.शनि के कोप से बचने हेतु व्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए. लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए. रोटी पर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए. तिल और चावल पकाकर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए. अपने भोजन में से कौए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें. शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है. शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें. मोर पंख धारण करने से भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है. शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ। शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए। शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए। भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए। भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए। किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए। घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए। शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।

क्या न करें— जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें गरीबों, वृद्धों...... aaga.....guru dev sa sampark kara 7417766360 par

मंगल के उपाय

पीड़ित व्यक्ति को लाल रंग का बैल दान करना चाहिए. लाल रंग का वस्त्र, सोना, तांबा, मसूर दाल, बताशा, मीठी रोटी का दान देना चाहिए. मंगल से सम्बन्धित रत्न दान देने से भी पीड़ित मंगल के दुष्प्रभाव में कमी आती है. मंगल ग्रह की दशा में सुधार हेतु दान देने के लिए मंगलवार का दिन और दोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है. जिनका मंगल पीड़ित है उन्हें मंगलवार के दिन व्रत करना चाहिए और ब्राह्मण अथवा किसी गरीब व्यक्ति को भर पेट भोजन कराना चाहिए. मंगल पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 10 से 15 मिनट ध्यान करना उत्तम रहता है. मंगल पीड़ित व्यक्ति में धैर्य की कमी होती है अत: धैर्य बनाये रखने का अभ्यास करना चाहिए एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना चाहिए. लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए। बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है। लाल वस्त्र ले कर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए। मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर ले कर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए। बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए। अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए। मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

—क्या न करें—- आपका मंगल अगर पीड़ित है तो आपको अपने क्रोध नहीं करना चाहिए. अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए. किसी भी चीज़ में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए और भौतिकता में लिप्त नहीं होना चाहिए

मंगल. अशुभ होने पर
मीठी रेवडी या पताशे पानी मे बहाये ।शुबह के नाशते मर मिठठा जरूर. ले।मसूर की दाल जल में  बहाये॥हनुमान चालीसा का पाठ करे।गुड चने का भोग लगाये परशाद बांटे ॥
आपकी हर मुराद पूरी होगी
              

Monday, 15 June 2015

शिव प्रतीकों का रहस्य

शिव औढरदानी, कल्याण के देवता माने गए हैं। सृष्टि निर्माण में एक ही शक्ति तीन रूपों में अपना कार्य संपादन करते हुए दिखाई देती है।ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु पालन-पोषण करते हैं और शिव संहार करते हैं यानी निर्माण से नाश तक जगत का चक्र परम सत्ता द्वारा निरंतर प्रकृति में चलता रहता है।वेदों में प्रकृति के उपादानों की उपासना की गई है।हरेक उपादान को देवता का रूप दिया गया है।यह प्रकृति-विज्ञानका सारा प्रपंच बड़ा रहस्यमय है जिसे समझना सामान्यजन के लिए कठिन है।अनादिकाल से ऋषियों ने इन रहस्यों का मनन-चिंतन द्वारा अनुसंधान करने का प्रयत्न किया है।शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को आती है। शिवजी इस चतुर्दशी के स्वामी हैं।इस दिन चंद्रमा सूर्य के अधिक निकट होता है।समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है।इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग रहता है,अत: शिवरात्रि को लोग जागरण कर व्रत रखते हैं।शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है।उनका सारा क्रियाकलाप विरोधाभासों का भंडार है।ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में रात्रि को नित्य प्रलय और दिन को नित्य सृष्टि कहा गया है।दिन में हमारा मन और हमारी इंद्रियां भीतर से बाहर निकलकर प्रपंच की ओर दौड़ती हैं और रात्रि में फिर बाहर से भीतर जाकर शिव की ओर प्रवृत्त हो जाती हैं।इसीलिए दिन सृष्टि का और रात प्रलय की द्योतक है।.आइए पहचानें शिव के प्रतीक और उनका गहन रहस्य-.वृषभ : शिव का वाहन.वृषभ शिव का वाहन है। वह हमेशा शिव के साथ है। वृषभ का अर्थ धर्म है। मनुस्मृति के अनुसार 'वृषो हि भगवान धर्म:'। वेद नेधर्म को चार पैरों वाला प्राणी कहा है। उसके चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। महादेव इस चार पैर वाले वृषभ की सवारी करते हैं यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके अधीन हैं।वृषभ का एक अर्थ वीर्य और शक्ति भी है।अथर्ववेद में वृषभ को पृथ्वी का धारक, पोषक, उत्पादक आदि बताया गया है। वृषका अर्थ मेघ भी है। इसी धातु से वर्षा, सृष्टि आदि शब्द बने हैं।.जटाएं.शिव अंतरिक्ष के देवता हैं। उनका नाम व्योमकेश है अत: आकाश उनकी जटास्वरूप है। जटाएं वायुमंडल की प्रतीक हैं। वायु आकाश में व्याप्त रहती है। सूर्यमंडल से ऊपर परमेष्ठि मंडल है। इसके अर्थतत्व को गंगा की संज्ञा दी गई है अत: गंगा शिव की जटा में प्रवाहित है। शिव रुद्रस्वरूप उग्र और संहारक रूप धारक भी माने गए हैं।.गंगा और चंद्रमा.इस उग्रता का निवास मस्तिष्क में है इसीलिए शांति की प्रतीक गंगा और अर्द्धचंद्र शिव के मस्तक पर विराजमान होकर उनकी उग्र वृत्ति को शांत-शीतल रखते हैं। दूसरे, विषपान केकारण वे जो नीलकंठ हो गए हैं, उसकी जलनको शांति भी गंगा और चंद्रमा से प्राप्त होती है। चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र और सशक्त है। उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। उनके मस्तिष्क में कभी अविवेकपूर्ण विचार नहीं पनप पातेहैं। शिवका चंद्रमा स्वच्छ और उज्ज्वल है। उसमें मलीनता नहीं, वह अमृत की वर्षा करता है। चंद्रमा का एक नाम 'सोम' है, जो शांति का प्रतीक है। इसी हेतु सोमवार शिवपूजन, दर्शन और उपासना का दिन माना गया है।.तीन नेत्र.शिव को त्रिलोचन कहते हैं यानी उनकी तीन आंखें हैं। वेदानुसार सूर्य और चंद्र विराट पुरुष के नेत्र हैं। अग्नि शिव का तीसरा नेत्र है, जो यज्ञाग्नि का प्रतीक है। सूर्य बुद्धि के अधिदेवता हैं और इस ज्ञान नेत्र या अग्नि से ही उन्होंने कामदेव को भस्म किया था।शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम- तीन गुणों, भूत, भविष्य, वर्तमान - तीन कालों और स्वर्ग, मृत्यु, पाताल- तीन लोकों के प्रतीक हैं अत: शिव को त्र्यंबक भी कहते हैं।.सर्पों का हार.भगवान शंकर के गले और शरीर पर सर्पों का हार है। सर्प तमोगुणी है और संहारक वृत्ति का जीव है। यदि वह मनुष्य को डसले तो उसका प्राणांत हो जाता है। अत: संहारिकता के प्रतीकस्वरूप शिव उसे धारण किए हुए हैं अर्थात शिव ने तमोगुण को अपने वश में कर रखा है। सर्पजैसा क्रूर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन है।.त्रिशूल.शिव के हाथों में एक मारक शस्त्र त्रिशूल है। सृष्टि में मानवमात्र आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इनतीन तापों से त्रस्त रहता है। शिव का त्रिशूल इन तापों को नष्ट करता है। शिव की शरण में जाकर ही भक्त इन दुखों से छूटकर आनंद की प्राप्ति कर सकता है। शिव का त्रिशूल इच्छाि, ज्ञान और क्रिया का सूचक है।.डमरू.शिव के बाएं हाथ में डमरू है। तांडव नृत्य के समय वे उसे बजाते हैं। पुरुष और प्रकृति के मिलन का नाम ही तांडव नृत्य है। उस समय अणु-अणु में क्रियाशीलता जागृत होती है और सृष्टिका निर्माण।

janiya kya kara amawasya ko


अमावस्या हिन्दु पंचांग के अनुसार माह की 30 वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है, उस दिन आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं देता, रात्रि में सर्वत्र गहन अन्धकार छाया रहता है । इस दिन का ज्योतिष एवं तंत्र शास्त्र में अत्यधिक महत्व हैं।
तंत्र शास्त्र के अनुसार अमावस्या के दिन किये गए उपाय बहुत ही प्रभावशाली होते है और इसका फल भी अति शीघ्र प्राप्त होता है।
पितृ दोष हो या किसी भी ग्रह की अशुभता को दूर करना हो, अमावस्या के दिन सभी के लिए उपाय बताये गए है ।
आपकी आर्थिक, पारिवारिक और मानसिक सभी तरह की परेशानियाँ इस दिन थोड़े से प्रयास से ही दूर हो सकती है।

हर अमावस्या को घर के कोने कोने को अच्छी तरह से साफ करें, सभी प्रकार का कबाड़ निकाल कर बेच दें।

इस दिन सुबह शाम घर के मंदिर और तुलसी पर दिया अवश्य ही जलाएं इससे घर से कलह और दरिद्रता दूर रहती है ।

अमावस्या पर तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए। अमावस्या पर देवी-देवताओं को तुलसी के पत्ते और शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।

धन लाभ के लिए अमावस्या के दिन पीली  त्रिकोण आकृति की पताका विष्णु मन्दिर में ऊँचाई वाले स्थान पर इस प्रकार लगाएँ कि वह लगातार लहराती रहे, तो आपका भाग्य शीघ्र ही चमक उठेगा। लगातार स्थाई लाभ हेतु यह ध्यान रहे की झंडा वहाँ लगा रहना चाहिए। उसे आप समय समय पर स्वयं बदल भी सकते है।

हर अमावस्या को गहरे गड्ढे या कुएं में एक चम्मच दूध डालें इससे कार्यों में बाधाओं का निवारण होता है ।
इसके अतिरिक्त अमावस्या को आजीवन जौ दूध में धोकर बहाएं,  आपका भाग्य सदैव आपका साथ देगा ।

हर अमावस्या को पीपल के पेड़ के नीचे कड़वे तेल का दिया जलाने से भी पितृ और देवता प्रसन्न होते हैं।

प्रत्येक अमावस्या को गाय को पांच फल भी नियमपूर्वक खिलाने चाहिए, इससे भी घर में शुभता एवं हर्ष का वातावरण बना रहता है ।

अमावस्या के दिन किसी सरोवर पर गेहूं के आटे की गोलियां ले जाकर मछलियों को डालें। इस उपाय से पितरों के साथ ही देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है, धन सम्बन्धी सभी समस्याओं का निराकरण होता है।

अमावस्या के दिन एक कागजी नींबू लेंकर शाम के समय उसके चार टुकड़े करके किसी भी चौराहे पर चुपचाप चारों दिशाओं में फेंक दें। इस उपाय से जल्दी ही बेरोजगारी की समस्या दूर हो जाती है।

अमावस्या के दिन क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य, माँस, मदिरा का सेवन  एवं  स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध, मैथुन कार्य आदि का निषेध बताया गया है, जीवन में स्थाई सफलता हेतु इस दिन इन सभी कार्यों से दूर रहना चाहिए ।

अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए विशेष पूजन करना चाहिए। यदि आपके पितृ देवता प्रसन्न होंगे तभी आपको अन्य देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त हो सकती है। पितरों की कृपा के बिना कठिन परिश्रम के बाद भी जीवन में अस्थिरता रहती है, मेहनत के उचित फल प्राप्त नहीं होती है ।

हर अमावस के दिन एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य ही कराएं। इससे आपके पितर सदैव प्रसन्न रहेंगे, आपके कार्यों में अड़चने नहीं आएँगी, घर में धन की कोई भी कमी नहीं रहेंगी और आपका घर –  परिवार को टोने-टोटको के अशुभ प्रभाव से भी बचा रहेगा।

पितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर जल में दूध , गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल मिलाकर सींचते हुए पुष्प, जनेऊ अर्पित करते हुये  “ऊँ  नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 7 बार परिक्रमा करे तत्पश्चात्  ॐ पितृभ्यः नमः मंत्र का जप करते हुए अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं  का निवारण हो जाता है।

हर अमावस्या पर पितरों का तर्पण अवश्य ही करना चाहिए । तर्पण करते समय एक पीतल के बर्तन में जल में गंगाजल , कच्चा दूध, तिल, जौ, तुलसी  के पत्ते, दूब, शहद और सफेद फूल आदि डाल कर पितरों का तर्पण करना चाहिए। तर्पण, में तिल और कुशा सहित जल हाथ में लेकर दक्षिण दिशा की तरफ मुँह करके तीन बार तपरान्तयामि, तपरान्तयामि, तपरान्तयामि कहकर पितृ तीर्थ यानी अंगूठे की ओर जलांजलि देते हुए जल को धरती में किसी बर्तन में छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है। ध्यान रहे तर्पण का जल तर्पण के बाद किसी वृक्ष की जड़ में चड़ा देना चाहिए वह जल इधर उधर बहाना नहीं चाहिए।

शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को पित्तर अपने घर पर आते है अतः इस दिन हर व्यक्ति  को यथाशक्ति उनके नाम से दान करना चाहिए।  इस दिन बबूल के पेड़ पर संध्या के समय पितरों के निमित्त भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है।
पितरों को खीर बहुत पसंद होती है इसलिए प्रत्येक माह की अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन के साथ खिलाने पर महान फल की प्राप्ति होती है ।

Wednesday, 10 June 2015

साधना में असफलता के कुछ विशेष कारण होते हैं !

साधना में असफलता के कुछ विशेष कारण होते हैं ! जैसे : ~गुरु का सही मार्गदर्शन प्राप्त ना होना , दूसरा साधना चक्र ( साधना शिविर ) में ना आना , तीसरा साधना के लिए नियत तपोभूमि में ना आना और चोथा उचित साधना और शुद्ध साधना सामग्री का प्राप्त ना होना ~गुरुदेव श्री बहल जी ~
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मित्रों ! ''तंत्र सबके लिए मिशन '' के विषय में लगभग सभी साधक जानते हैं कि तंत्र मार्ग पर चलते हुए इस संस्था को काफी समय व्यतीत हो चुका है ! इस समय में कुछ स्वार्थी साधक जुड़े तो कुछ बेतरह समर्पित साधक भी जुड़े ! स्वार्थी साधक मार्ग में ही छूट गए और समर्पित साधक आज भी मिशन के साथ हैं ! आप यह समझ लें , जान लें , ह्रदय में बिठा लें जो यह मिशन देगा वह और कहीं नहीं मिलेगा ! बात ऐसी बिलकुल नहीं है , हर संस्था अपने अनुयायिओं को सदैव अच्छा ही देती है ! बस आप स्वार्थ को त्यागें , आँखों से अन्धविश्वास की पट्टी हटा लें ! आप जड़ को अर्थात संस्था को सींचे , संस्था आपका कल्याण करेगी ! मुखिया तो आते रहते हैं , जाते रहते हैं , संस्था सदैव रहती है ! साधना करें , सही मार्ग का चयन करें , तंत्र गुरु के निर्देशों का पालन सच्चे ह्रदय से करें ! बात जब साधना में असफलता की आती है , तब उसके कुछ विशेष कारण होते हैं ! जैसे : ~गुरु का सही मार्गदर्शन प्राप्त ना होना , दूसरा साधना चक्र ( साधना शिविर ) में ना आना , तीसरा साधना के लिए नियत तपोभूमि में ना आना और चोथा उचित साधना और शुद्ध साधना सामग्री का प्राप्त ना होना ! हमे पता है , हम जानते हैं , हम कर लेंगे , हम यह कर चुके हैं यह गर्व है और असफलता की और ले जाने वाला मार्ग है ! चलिए हम मान लेते हैं आप विद्वान हैं , आपको साधना का गोपनीय मार्ग पता है , आप यह कर चुके हैं , आप वह कर चुके हैं , आप यह कर सकते हैं , आप वह कर सकते हैं , मैं पूछता हूँ क्या साधना से पहले आपने , अपनी सुरक्षा की है ? आपने साधारण पुस्तकों में लिखा या किसी व्यवसायी तांत्रिक द्वारा बतलाया गया मन्त्र पढ़ा और साधना प्रारम्भ करदी ! परिणाम असफलता या कभी ~ कभी दारुण कष्ट ! आप बार ~ बार सोचते हैं अब तक तो सब कुछ ठीक था , यह कष्ट , यह विपत्ति अचानक कहाँ से आ गयी ? तंत्र भैरवी मिन्ही कहती है , कुशोक ! साधना से पहले '' तांत्रिक तंत्र सुरक्षा कवच '' पहनो ! मैंने वही पहना और आज तक पहना हुआ है ! स्मरण रखें कृपया हमे तंत्र सुरक्षा कवच देने का अनुरोध ना करें ! हम तांत्रिक वस्तुएं , पुस्तकें बेचने का कार्य नहीं करते हैं , अस्तु ऐसा कोई अनुरोध स्वीकार करने में हम नितांत असमर्थ हैं ! आज तंत्र को भ्रान्ति से निकालने की आवश्यकता है ! आयोजक साधना शिविर ना लगाकर तंत्र पर प्रवचन रखें !
तंत्र भैरवी को लेकर भी अनेक भ्रांतियां हैं ! कोई तंत्र भैरवी को भोग ( SEX ) का सशक्त माध्यम मानता है ,तो कोई समय बिताने का उत्तम माध्यम मानता है तो कोई तंत्र भैरवी को सेविका के रूप में रखते हैं ! यह धारणा मिथ्या है ! तंत्र भैरवी गुरु तो नहीं होती पर उससे कम भी नहीं होती है ! एक प्रश्न उठता है कि क्या यह अप्सरा , किन्नर , योगिनी , यक्ष्णi की तरह आकाश से आती है ? जी नहीं इनमे से एक भी नहीं ! तंत्र भैरवी एक सामान्य साधिका होती है , लेकिन ज्ञान , साधना , सिद्धि से भरपूर प्याला होती है !मैं अपनी बात को इस प्रकार समझाने का प्रयत्न करता हूँ जिस प्रकार तांत्रिक बनने से पहले सामान्य व्यक्ति साधक होता है ,उसी प्रकार एक साधिका होती है ! निरंतर कठोर साधना , त्याग और तंत्र ~मन्त्र का गुप्त ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब तंत्र गुरु संतुष्ट होता है तो साधक को तांत्रिक का और साधिका को तंत्र भैरवी पद दे देता है ! अधिक जानकारी के लिए मेरी पुस्तक '' तंत्र ~ मन्त्र ~यंत्र का गुप्त ज्ञान '' अवश्य पढ़ें ! सूचनार्थ निवेदन है तामसिक साधना शिविर ~ 2 और गुरु पूर्णिमा का शिविर शीघ्र लगाया जायेगा आप तुरंत डॉ.आर.एस.प्रसाद तांत्रिक मोबाइल न. 09835220108 और जयेश भाई गायवाला सूरत गुजरात मोबाइल न. 09825574899 पर संपर्क करें ! मैं शीघ्र मुम्बई , पुणे और सूरत की यात्रा पर आ रहा हूँ ! स्मरण रखें ! अधिक जानकारी के लिए जयेश भाई गायवाला सूरत गुजरात से या मेरी वेब साईट पर लाग ऑन करें ! शेष फिर ! गुरु स्मरण ! जय गुरु देव !!! हरी ॐ !!!! .

Tuesday, 9 June 2015

साधना .....यानि स्वय को साधना

ॐ गुरवे नमः......आज आपकी आपसे ही मुलाक़ात करानी है.....कई सारे साथियों के सवालों से अपनी बात करुगा....कई सारे साथी सुझाव कुछ इस तरह से मांगते है.....में बहुत परेशां हूँ...हमेशा डर बना रहता है.....जो काम कर रहा हूँ उसमे मन ही नहीं लगता....खूब मेहनत करता हूँ पर कमाई नजर ही नहीं आती...बच्चो के भविष्य को लेकर परेशां हूँ.....सेहत हमेशा ख़राब ही रहती है....घर में नेगेटिव उर्जा है.....किसी में कुछ कर दिया है.....परिवार में रिश्ते बिखराव पर है.....अब तो जीने की तमन्ना ही ख़त्म हो गयी है.....ऐसे सवाल आपके भी हो सकते है......समाधान इनका सबको चाहिए.....आज इन्ही से जुड़े समाधानों पर थोड़ी थोड़ी बात करेगे.....आपसे इतना अनुरोध है.....की इस पोस्ट पर थोडा समय दे.....यह पोस्ट नहीं जीवन आनंद का पथ है......समझना ही साधना पथ का पहला कदम होगा.......
आपसे इतना पूछना चाहते है कि आखिर यह सवाल कहा से आते है.....नकारात्मकता के बीज का केन्द्र कहा है.....क्यों सब कुछ ठीक ठाक होने के बावजूद अनजाना डर आता है.....कहा से इनकी उपज होती है......
साथियों ....बात शरीर से करेगे.....जो इस शरीर को ही अपना वजूद मानते है....सारी यात्रा शरीर से शुरू और शरीर से ख़त्म...ऐसे में बाहर से ही हम जुड़े रहते है....हमारी ख़ुशी और गम के केन्द्र बाहर ही होते है....दोस्त, परिवार, काम काज सब बाहर की दुनिया है....किसी ने कुछ कहा तो नाराज.....किसी ने कुछ कहा तो खुश.....ऐसे में एक वक्त ऐसा आता है की दर्द, डर, सेहत में गिरावट, सम्पति में संकट, दरकते रिश्ते हमें तोड़ देते है......
अक्सर इस तरह की तकलीफ में जब हम होते है.....तो आपने देखा होगा की अशांति के बीच भी हमें एक पल के लिए लड़ने की ....सब ठीक होने की प्रेरणा अपने भीतर से मिलती है.....पर डर और दर्द शरीर का इतना हावी होता है कि हम भीतर की बात को सुनी अनसुनी कर देते है......
आपको इतना लंबा ले जाकर समझाने का भाव यही था की बात भीतर तक उतरे.....यह भीतर क्या है और किसने हमें सही रास्ता दिखाने की नसीहत दी....साथियों सच में शरीर तो एक माध्यम मात्र है....सब कुछ संचालन भीतर से ही होता है......बाहर तो दर्द है..डर है.....
भीतर की आवाज यानि हमारे कारण शरीर की पुकार....यही आत्मा है.....और इन दोनों के बीच की कड़ी है सूक्ष्म शरीर यानि मन.....
इन सब को समझने के लिए आप हमारी अगली पोस्ट का इन्तजार करे.....अधूरी है....लिखी अधूरी ही है....धीरे धीरे समझना है.....आप तनिक भी जल्दबाजी न करे.....यह आपके जीवन पथ को नयी दिशा देने का सेतू बनेगी...अगली पोस्ट में ध्यान साधना और आनंद पथ से जुडेगे......आपसे अनुरोध है की अगली पोस्ट से पहले अपने सभी साथियों को इस पोस्ट से जोड़े.....आप हमसे अपनी बात भी कह सकते है....ॐ गुरवे नमः ....ॐ गुरवे नमः...आशीर्वाद ..जगदगुरु की कृपा आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे..


पित्र दोष निवारण के कुछ खास उपाय / टोटके

pitra dosh duur karne ke upay

पित्र दोष दूर करने के उपाय 
 पित्र दोष दूर करने के ज्योतिष शास्त्र ने कई उपाय बताये है. जैसा कुंडली में दोष होता है उसी के अनुरूप उपाय करने से सफलता मिलती है .सामान्य उपाय के तोर पर महानारायण गायत्री, षोडश पिंड श्राद्ध सर्प पूजन, कन्यादान पीपल का पेड़ लगाना, इन सब में महतवपूर्ण है श्री मद भागवत का पाठ. हम निचे कुछ सामान्य से उपाय प्रस्तुत कर रहे है जिनसे जन सामान्य भी अपने कुल के पित्र दोष से मुक्त हो सके और सफलता की और कदम उठा सके.
१. प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर दूध चदना चाहिए. 
२. पितरो. को भागवत सुनना सर्वोत्तम उपाय है. 
३. गया में श्राद्ध करना चाहिए.
 ४. नदी ,तलब के निकट शिवाशेक करने से भी पित्र दोष शांत होता है.
५.शनिवार या अमावश्य की रात इशान कोण में जल का कलश रखने से भी शांति मिलती है. ६
६.नाग्वाली करना भी उत्तम उपाय है.
७.गुरूवार के दिन शामको पीपल के पेड़ पर घी का दिया जलने से पित्र प्रशन्न होते है.
८.इन सभी उपायों में सर्व श्रेष्ठ उपाय भागवत का पाठ कारन उत्तम है श्री मद भागवत के पथ के लिए आप मुझ से संपर्क कर सकते है.

★★चक्रों की जानकारी★★

यह शरीर का पहला चक्र है।
गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है।
99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है, उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : "लं"
चक्र जगाने की विधि:
मनुष्य तब तक पशुवत् है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है। इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है, यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव :
इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाते है। सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
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2. स्वाधिष्ठान चक्र :
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यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है।
जिसकी छ पंखुरियां हैं।
अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है, तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : "वं"
कैसे जाग्रत करें :
जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती। लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं, वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। आप जानते हैं, नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव :
इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो, तभी सिद्धियाँ आपका द्वार खटखटाएंगी।
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3. मणिपुर चक्र :
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नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामक तीसरा चक्र है।
जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है।
जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है, उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : "रं"
कैसे जाग्रत करें :
आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव :
इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-क्लेश दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
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4. अनाहत चक्र :
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हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है।
अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
मंत्र : "यं"
कैसे जाग्रत करें :
हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना" इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव :
इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार आदि समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समक्ष ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्व प्रिय बन जाता है।
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5. विशुद्ध चक्र :
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कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलह पंखुरियों वाला है।
सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : "हं"
कैसे जाग्रत करें :
कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव :
इसके जाग्रत होने पर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है। वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
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6. आज्ञाचक्र :
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भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटि में)
में "आज्ञा-चक्र" है और जो दो पंखुरियों वाला है।
सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है, तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है। लेकिन वह सब कुछ जानने के बावज़ूद मौन रहता है। इसे "बौद्धिक सिद्धि" कहते हैं।
मंत्र : "ऊं"
कैसे जाग्रत करें :
भृकुटि के मध्य में ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव :
यहां अपार शक्तियाँ और सिद्धियाँ निवास करती हैं। इस "आज्ञा चक्र" का जागरण होने से ये सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।
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7. सहस्रार चक्र :
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"सहस्रार" की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात् जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।
कैसे जाग्रत करें :
"मूलाधार" से होते हुए ही "सहस्रार" तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह "चक्र" जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।
प्रभाव :
शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही "मोक्ष" का द्वार है।
।।जय श्रीःमाँ ।।

योगिनी विद्या

योगिनी यह शब्द प्रचलित है और कहा जाता है जब तक योगिनी की कृपा साधक पर ना हो तब तक उसको साधना मे शीघ्र सफलता प्राप्त नही होता है.इसके पीछे का एक कारण लिखना चाहता हू,हमारे तंत्र मे 64 योगिनी है जो शिव जी के सेवा मे होती है और जब भी कोई साधक साधना मे होता है तो योगिनिया उसके साधना को खंडित करती है.जैसे साधक के मन मे साधना के समय विचार आते रहेते है, उसको निंद आती है,वह ध्यान नही लगा पाता,कभी उसको आलस्य आता है तो कभी प्यास लगती है या लघू-दीर्घ शंका आती है.....बहोत सारे विघ्न उसके साधना मे आते है और इन विघ्नो का कारण योगिनिया है जिन्हे शिव जी से वरदान प्राप्त है "प्रत्येक साधक को मदत करने हेतु,परंतु जब तक वह साधक से प्रसन्न नही होती तक वह अपने इच्छानुसार साधक को फल देगी".जब योगिनिया साधक पर प्रसन्न होती है तो उसके मंत्रो को मंत्रदेवता तक पहोचा देती है और उसके कार्यो मे आनेवाले विघ्नो का निवारण कर देती है.प्राचीन शिवमंदिरो मे आज भी योगिनियो के विग्रह देखने मिलते है क्यूके वहा योगिनिया भक्तो के साथ-साथ मंदिर का भी सुरक्षा करती रहेती है.
64 योगिनियो मे मंत्र योगिनी,दिव्य योगिनी ,सिद्धी योगिनी,धन योगिनी इस प्रकार की योगिनीया है जो साधक को सिद्धी के साथ सभी कार्यो मे पूर्ण सफलता प्रदान करती है.बिना योगिनी कृपा के साधना मे सफलता प्राप्त करना कठीन कार्य है.
इस बार 12 जुन को योगिनी एकादशी है और आशा करता हू आप सभी साधक इस अवसर का लाभ उठायेगे.