Friday, 28 August 2015

ग्रह प्रभाव और रोग

ग्रह प्रभाव और रोग
ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के
अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है।
नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने
भविष्य को सुखद बना सकते हैं।
वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में
रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं
पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने
ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल,
आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर
शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व
360 की राशियों का समूह है।
इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष,
कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ
वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का
प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की
कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का
कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है
जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और
वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा
मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है।
इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता
है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता,
पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और
व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है।
इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व
करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के
प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती
है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार
किसी भी जातक के रोग के बारे में
जानकारी हासिल कर सकते हैं।
कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए
संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो
वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि
में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर
और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य
की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।
अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में
हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो
इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित
बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार
कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु
आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की
कमी रहती है। साथ ही
विटामिन सी की कमी
रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की
बीमारी का भय रहता है।
चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध
होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और
स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है।
मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये
नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं
तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी
बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा
भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी
की समस्या रहती है जबकि बुध का
कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है।
चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी
एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो
नशाखोरी की लत पड़ती है।
इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप
अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं।
किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से
ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर
आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।

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