Monday, 31 August 2015

51 शक्ति पीठो का विवरण

51 शक्ति पीठो का विवरण- (Details of 51 Shakti Peethas) :
बिना आमंत्रण के मायका जाने से होने वाले अपमान स्वरुप माता सती के अग्नि कुण्ड में कूद कर जल जाने के बाद भगवान शंकर द्वारा माता सती के भग्न शरीर को लिए लिए फिरने से शरीर का अंग चारो ओर जहाँ-जहाँ गिरे उन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है,के बारे में जानकारी-

1. किरीट शक्तिपीठ  (Kirit Shakti Peeth) :
किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है।  यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।

(शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है )

2. कात्यायनी शक्तिपीठ  (Katyayani Shakti Peeth ) :
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है। 

3. करवीर शक्तिपीठ  (Karveer shakti Peeth) :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ  (Shri Parvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ   (Vishalakshi Shakti Peeth) :
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ  (Godavari Coast Shakti Peeth) :
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। 

7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ  (Suchindram shakti Peeth) :
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

8. पंच सागर शक्तिपीठ (Panchsagar Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ (Jwalamukhi Shakti Peeth) :
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ  (Bhairavparvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ  गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।

11. अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas Shakti Peeth) :
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan Shakti Peeth) :
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

13. कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti Peeth or Amarnath Shakti Peeth) :
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

14. नन्दीपुर शक्तिपीठ (Nandipur Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ  (Shri Shail Shakti Peeth ) :
आंध्रप्रदेश  के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

16. नलहटी  शक्तिपीठ (Nalhati Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth ) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर

18. रत्नावली शक्तिपीठ (Ratnavali Shakti Peeth) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

19. अम्बाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shakti Peeth) :
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के  शिखर पर देवी अम्बिका  का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. जालंध्र शक्तिपीठ (Jalandhar Shakti Peeth) :
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।.

21. रामागरि शक्तिपीठ (Ramgiri Shakti Peeth) :
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ (Vaidhnath Shakti Peeth) : 
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (Varkreshwar Shakti Peeth) :
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (Kanyakumari Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ (Bahula Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ (Ujjaini Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ (Manivedika Shakti Peeth) :
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ (Prayag Shakti peeth) :
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।

29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (Utakal Shakti Peeth) :
उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति  विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

30. कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

31. कालमाध्व शक्तिपीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

32. शोण शक्तिपीठ (Shondesh Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि  बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है।
यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti peeth) :
कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

34. जयन्ती शक्तिपीठ (Jayanti Shakti Peeth) :
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

35. मगध् शक्तिपीठ (Magadh Shakti Peeth) :
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ (Trishota Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ (Tripura Sundari Shakti Peeth) :
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ (Vibhasha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ  (Kurukshetra Shakti Peeth) :
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है।  यहां माता के  दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

40. युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (Ughadha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है। 

41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (Virat Nagar Shakti Peeth) :
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के 'दायें पाँव की उँगलियाँ' गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ (Kalighat Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

43. मानस शक्तिपीठ (Manasa Shakti Peeth) :
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

44. लंका शक्तिपीठ (Lanka Shakti Peeth) :
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. गण्डकी शक्तिपीठ (Gandaki Shakti Peeth) :
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (Guhyeshwari Shakti Peeth) :
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ (Hinglaj Shakti Peeth) :
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।

48. सुगंध शक्तिपीठ  (Sugandha Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

49. करतोयाघाट शक्तिपीठ (Kartoyatat Shakti Peeth) :
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में  करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

50. चट्टल शक्तिपीठ (Chatal Shakti Peeth) :
बंग्लादेश के चटगांव  में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी  तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ (Yashor Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का  यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।
🙏जय माता दी🙏🚩🚩

खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना

खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना)
आपने यह तथ्य मन से संबंधित लेख में पढ़ा है किन्तु यह तथ्य मात्र पढ़ने के लिए नहीं लिखा गया था, अपितु इसके बहुत गहन अर्थ हैं. मैंने अपने हर लेख में मेरे मास्टर द्वारा समझाई गयी एक बात को हमेशा और बार – बार दोहराया है कि शून्य या ब्रह्मांड एक ऐसे साम्राज्य का नाम है जिसमें असंभव जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं है.....वहाँ हर वो चीज सम्भव है जो सामान्य बातों में सोच के भी परे हो.
“ संभव “ शब्द के संभवतः हाजारों करोड़ों अर्थ हो सकते हैं क्योंकि कौन कैसी मानसिकता के साथ इस शब्द की व्याख्या करता है यह निर्भर करता है इस बात पर कि हर एक से दूसरे इंसान के बीच विचारों का मतभेद कितना गहरा है. किन्तु तंत्र में इस शब्द का एक ही अर्थ है......” सक्षम बनो तांकि काल का पहिया भी तुम्हारे हिसाब से चले “..... और यही बात मुझे मेरे मास्टर हमेशा समझाते हैं कि तंत्र मूर्खों की अपेक्षाओं पर नहीं चलता और जिसने काल का वरण कर लिया उसके लिए करने को कुछ और शेष नहीं रह जाता. हम सब जानते हैं कि दशानन रावण कालजयी थे क्योंकि उन्होंने अपने काल को अपने पलंग के खूंटे से बाँध रखा था....पर हमने कभी यह जानने की चेष्टा नहीं की कि उन्होंने ऐसा किया कैसे था....वो यह सब इसलिए संभव कर पाए थे क्योंकि वो एक श्रेष्ठ तांत्रिक थे....और उन्होंने अपने अंदर के काल पुरुष पर विजय प्राप्त कर ली थी.
हम सब के अंदर एक काल पुरुष होता है जिससे हम शिव के प्रतिरूप काल भैरव के रूप में परिचित हैं. भैरव कुल ५२ होते हैं पर इनमें से सबसे श्रेष्ठ काल भैरव हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि हर भैरव एक विशेष शक्ति के अधिपति हैं पर काल भैरव को इन सब भैरवों के स्वामित्व का सम्मान प्राप्त है और ज़ाहिर है यदि यह स्वामी है तो हर परिस्थिति में अपने साधक को अधिक से अधिकतम सुख और फल प्रदान करने वाले होंगे, इसीलिए इनकी साधना को जीवन की श्रेष्टतम साधना कहा गया है. वैसे तो हर साधना का हमारे जीवन में विशेष स्थान है पर कुबेर साधना, दुर्गा साधना और काल भैरव साधना को जीवन की धरोहर माना गया है.
अब सबसे बड़ी बात यह है कि भैरव नाम सुनते ही मन में एक अजीब से भय का संचार होने लगता है, भयंकर से भयंकर आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है, गुस्से से भरी लाल सुर्ख आँखें, सियाह काला रंग, लंबा – चौड़ा डील डोल और ना-जाने क्या, क्या??? इसके विपरीत एक सच यह भी है जहाँ भय हो वहाँ साधना नहीं हो सकती और साक्षत्कार तो दूर की बात है.
किन्तु जहाँ समस्या वहाँ समाधान....तो काल भैरव की साधना से सम्बंधित डर से मुक्ति पाने के लिए हमें इनको समझना पड़ेगा. जैसे सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही काल और भैरव एक सिक्के के दो पक्ष हैं. काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है वो पुरुष जिसमें काल पर विजय प्राप्त करने की क्षमता हो. अब यहाँ काल का अर्थ सिर्फ मृत्यु नहीं है अपितु हर उस वस्तु से है जो हमारे मानसिक सुखों को क्षीण करने में सक्षम हो. अब यह समस्या शारीरिक, आंतरिक, मानसिक, और रुपये पैसे से संबंधित कैसी भी हो सकती है.
अब जो काल पुरुष होगा उसे इनमें से किसी समस्या का भय नहीं होगा क्योंकि समस्या उसके सामने ठहर ही नहीं सकती. देवता और मनुष्यों में सबसे बड़ा अंतर यही है कि देवताओं की सीमाएं होती है जैसे अग्नि देव मात्र अग्नि से संबंधित कार्य कर सकते हैं उनका वरुण देव से कोई लेना देना नहीं, इसी प्रकार काम देव का इन दोने और अन्य देवताओं से कोई सरोकार नहीं, जबकि इसके विपरीत केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जिसके अंदर पूरा ब्रह्मांड समाहित है, जिसकी किसी भी कार्य को करने की कोई सीमा नहीं बस जरूरत है तो उसे अपने अंदर के पुरुष को जगाने की और यह तभी संभव है जब हमने हमारे ही अंदर के ब्रह्मांड को अर्थात काल को जीत लिया हो.
ऐसा ही एक साधना विधान यहाँ दे रह हूँ जो करने में बेहद सरल तो है ही पर इस विधान को करने के बाद के नतीजे आपको आश्चर्यचकित कर देंगे. इस साधना को करने के बाद ना केवल आपमें आत्म विश्वास बढ़ेगा बल्कि जटिल से जटिल साधनाएं भी आप बिना किसी भय और समस्या के कर पायेंगे. इस साधना को करने के पश्चात काल साधना करना सहज हो जाता है जो आपको काल ज्ञाता बनाने में सक्षम है अर्थात आप भूत, भविष्य, वर्तमान सब देखने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं. आँखों में एक ऐसी तीव्रता आ जाती है कि हठी से हठी मनुष्य भी आपके समक्ष घुटने टेक देता है.
इसके लिए आपको बस यह एक छोटा सा विधान करना है. किसी भी रविवार मध्यरात्रि काल में नहा धोकर अपने पूजा के स्थान में पीले वस्त्र पहन कर पीले आसान पर बैठ कर आपको निम्न मंत्र का मात्र ११ माला मंत्र जाप करना है.
मंत्र -
|| ओम क्रीं भ्रं क्लीं भ्रं ऐं भ्रं भैरवाय भ्रं ऐं भ्रं क्लीं भ्रं क्रीं फट ||
OM KREEM BHRAM KLEEM BHRAM AING BHRAM BHAIRAVAAY BHRAM AING BHRAM KLEEM BHRAM KREEM PHAT
साधना को करते समय आपकी दिशा पश्चिम होगी और दीपक तिल के तेल का जलाना है. किसी भी साधना में सफलता हेतु गुरु का और विघ्नहर्ता भगवान गणपति का आशीर्वाद अति अनिवार्य है इसलिए भागवान गणपति की अर्चना करने के पश्चात ही साधना प्रारंभ करें और मूल मंत्र की माला शुरू करने से पहले कम से कम गुरुमंत्र की ११ माला का जाप जरूर कर लें. मास्टर द्वारा दिए गए विधान में यदि आपने कोई माला सिद्ध की हो तो आप उसका उपयोग करें अन्यथा गुरु माला जिससे आप अपनी नित्य साधना करते हैं उसी का उपयोग कर सकते हैं. साधना करते समय आपका वक्षस्थल अनावर्त होना चाहिए और यदि कोई गुरु बहन इस विधान को सम्पन्न कर रही है तो उन पर यह नियम लागू नहीं होता. साधना के पश्चात अपना पूरा मंत्र जाप गुरु को समर्पित कर दें और एक जरूरी बात हो सकता है की साधना के दौरान आपका शरीर बहुत जादा गर्म हो जाए या ऐसा लगे जैसे गर्मी के कारण मितली आ रही है तो घबरायें नहीं, जब आपके अंदर उर्जा का प्रस्फुटन होता है तो ऐसा होना स्वाभाविक है. अपनी साधना पर केंद्रित रहें थोड़ी देर बाद स्थिति अपने आप सामान्य हो जायेगी.
खुद इस अद्भुत विधान को करके देखें और अपने सामान्य जीवन में बदलाव का आनंद लें, पर एक बात का ध्यान जरूर रखें किसी भी साधना में ऐसा कभी नहीं होता है की आज साधना की और कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा, इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है क्योकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे छोटे परिवर्तनों से होती है.
(नोट – कृपा साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अंतराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मंत्र जाप कर लें जिससे की यह मंत्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे.)

Sunday, 30 August 2015

माता अमर सिद्धिनी साधना।।।

माता अमर सिद्धिनी साधना।।।
यह साधना 3 दिन की है।108 लाल कनेर के फूल रोज पूजा में रखने है।जिन लोगों को देवी देवताओ भूत प्रेत आत्माओ में यकीन नही है ऐसे नास्तिक लोग इस साधना को जरूर करे ।।
किसी भी दिन रात को 10 बजे के बाद नह धोकर लाल वस्त्र धारण करे।पूजा की जगह देशी घी का दिया जलाये।।धूपबत्ती जलाये।।एक प्लेट में एक फल थोड़े से बतासे मावे की एक मिठाई रखे।ताँबे के लौटे में जलभर कर रखे।।माता दुर्गा का फ़ोटो सामने रखे।अपना मुख उत्तर दिशा में रखे।।
अपने सामने एक लाल वस्त्र बिछाकर उस पर 108 लाल कनेर के फूल रखे।फिर माता के मन्त्र से एक एक फूल अभिमंत्रित करके रखे।108 मन्त्र 108 फूलो पर होने के बाद माता अमर सिद्धिनी का 10 मिनट ध्यान करे।।उसके बाद फूलो को अपने सिरहाने रखकर सो जाये।।माता सपने में दर्शन देती है। 3 दिन रोज ऐसा करे।जब माता सिद्ध हो जाती हैं तो साधक के सभी सवालो का उत्तर मिलता है।। पैसो के लालची लोग साधक साधना न करे।
मन्त्र।।
ॐ नमो मार्तभद्रे चेटकाय सर्वार्थ सिद्धिकर तरे मम् स्वप्ने दर्शनाये कुरु कुरु स्वाहा।।

Friday, 28 August 2015

ग्रह प्रभाव और रोग

ग्रह प्रभाव और रोग
ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के
अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है।
नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने
भविष्य को सुखद बना सकते हैं।
वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में
रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं
पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने
ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल,
आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर
शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व
360 की राशियों का समूह है।
इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष,
कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ
वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का
प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की
कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का
कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है
जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और
वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा
मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है।
इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता
है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता,
पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और
व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है।
इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व
करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के
प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती
है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार
किसी भी जातक के रोग के बारे में
जानकारी हासिल कर सकते हैं।
कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए
संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो
वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि
में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर
और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य
की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।
अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में
हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो
इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित
बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार
कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु
आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की
कमी रहती है। साथ ही
विटामिन सी की कमी
रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की
बीमारी का भय रहता है।
चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध
होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और
स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है।
मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये
नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं
तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी
बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा
भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी
की समस्या रहती है जबकि बुध का
कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है।
चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी
एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो
नशाखोरी की लत पड़ती है।
इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप
अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं।
किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से
ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर
आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।