Friday, 25 September 2015

कन्याओ का विवाह नही हो रहा है

मंगल दोष कारण और निवारण aur कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न :--

जिन कुमारी कन्याओ का विवाह नही हो रहा है या विवाह में परेशानियाँ आ रही है वे कन्यायें इस मंत्र का नित्य प्रति दिन 11 माला जप करे तो उनका विवाह शीघ्र होगा मंत्र का उच्चारण शुद्ध करे
ॐ कात्यायनी महामाया, महायोगीन्यधीश्वरी
नंद गोप सुतं देहि पति में कुरु ते नम: ॐ ।।
या इस मंत्र के सम्पुट से १० पाठ दुर्गा शप्तशती के किसी योग्य पंडित जी से करवाये तो आप की
कन्या का विवाह शीघ्र होगा…
मनोवांछित श्रेष्ठ वर-प्राप्ति प्रयोग
१॰ भगवती सीता ने गौरी की उपासना निम्न मन्त्र द्वारा की थी, जिसके
फलस्वरुप उनका विवाह भगवान् श्रीराम से हुआ। अतः कुमारी कन्याओं को
मनोवाञ्छित वर पाने के लिये इसका पाठ करना चाहिए।
“ॐ श्रीदुर्गायै सर्व-विघ्न-विनाशिन्यै नमः स्वाहा।
सर्व-मङ्गल-मङ्गल्ये,
सर्व-काम-प्रदे देवि, देहि मे वाञ्छितं नित्यं, नमस्ते शंकर-प्रिये।।
दुर्गे शिवेऽभये माये, नारायणि सनातनि, जपे मे मङ्गले देहि, नमस्ते
सर्व-मङ्गले।।”
विधि- प्रतिदिन माँ गौरी का स्मरण-पूजन कर ११ पाठ करे।
२॰ कन्याओं के विवाहार्थ अनुभूत प्रयोग
इसका प्रयोग द्वापर में गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति-रुप में प्राप्त
करने
के लिए किया था। ‘नन्द-गोप-सुतं देवि’ पद को आवश्यकतानुसार परिवर्तित
किया
जा सकता है, जैसे- ‘अमुक-सुतं अमुकं देवि’।
“कात्यायनि महा-माये महा-योगिन्यधीश्वरि।
नन्द-गोप-सुतं देवि, पतिं मे कुरु ते नमः।”
विधि- भगवती कात्यायनी का पञ्चोपचार (१ गन्ध-अक्षत २ पुष्प ३ धूप ४ दीप ५
नैवेद्य) से पूजन करके उपर्युक्त मन्त्र का १०,००० (दस हजार) जप तथा
दशांश
हवन, तर्पण तथा कन्या भोजन कराने से कुमारियाँ इच्छित वर प्राप्त कर
सकती
है।
३॰. लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला
वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७
गुड़
की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र
में
बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः
स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान
पर
रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
४॰ श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे।
५॰ किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो,
तो
श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का
२१००० जप करना चाहिए-
“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”
६॰ “ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे,
देर न
करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”
उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर
११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस
कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर
दिये
गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी
चौराहे
पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो
जाता है।
७॰ जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना
चाहिए।
८॰ लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें
तो
लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं
बाँधनी चाहिए।
९॰ लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में
लपेट
कर रखे।
१०॰ पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की
रुकावट दूर हो जाती है।
११॰ विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेक
युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न
मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके
करना चाहिए।
“सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्याम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं
धनुः
पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम।
महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि
देहि।।”
१२॰ किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नहर्ता
गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक
मास
करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति
प्राण-प्रतिष्ठित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं
पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप,
नैवेद्य
से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर
१०८
दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के
बाद
लड्डू बच्चों में बांट दें।
यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता
अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें।
१३॰ पति-स्तवनम्
नमः कान्ताय सद्-भर्त्रे, शिरश्छत्र-स्वरुपिणे।
नमो यावत् सौख्यदाय, सर्व-सेव-मयाय च।।
नमो ब्रह्म-स्वरुपाय, सती-सत्योद्-भवाय च।
नमस्याय प्रपूज्याय, हृदाधाराय ते नमः।।
सती-प्राण-स्वरुपाय, सौभाग्य-श्री-प्रदाय च।
पत्नीनां परनानन्द-स्वरुपिणे च ते नमः।।
पतिर्ब्रह्मा पतिर्विष्णुः, पतिरेव महेश्वरः।
पतिर्वंश-धरो देवो, ब्रह्मात्मने च ते नमः।।
क्षमस्व भगवन् दोषान्, ज्ञानाज्ञान-विधापितान्।
पत्नी-बन्धो, दया-सिन्धो दासी-दोषान् क्षमस्व वै।।
।।फल-श्रुति।।
स्तोत्रमिदं महालक्ष्मि, सर्वेप्सित-फल-प्रदम्।
पतिव्रतानां सर्वासाण, स्तोत्रमेतच्छुभावहम्।।
नरो नारी श्रृणुयाच्चेल्लभते सर्व-वाञ्छितम्।
अपुत्रा लभते पुत्रं, निर्धना लभते ध्रुवम्।।
रोगिणी रोग-मुक्ता स्यात्, पति-हीना पतिं लभेत्।
पतिव्रता पतिं स्तुत्वा, तीर्थ-स्नान-फलं लभेत्।।
विधिः-
१॰ पतिव्रता नारी प्रातः-काल उठकर, रात्रि के वस्त्रों को त्याग कर,
प्रसन्नता-पूर्वक उक्त स्तोत्र का पाठ करे। फिर घर के सभी कामों से निबट
कर, स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर, भक्ति-पूर्वक पति को सुगन्धित जल से
स्नान करा कर शुक्ल वस्त्र पहनावे। फिर आसन पर उन्हें बिठाकर मस्तक पर
चन्दन का तिलक लगाए, सर्वांग में गन्ध का लेप कर, कण्ठ में पुष्पों की
माला
पहनाए। तब धूप-दीप अर्पित कर, भोजन कराकर, ताम्बूल अर्पित कर, पति को
श्रीकृष्ण या श्रीशिव-स्वरुप मानकर स्तोत्र का पाठ करे।
२॰ कुमारियाँ श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु, श्रीशिव या अन्य किन्हीं
इष्टदेवता
का पूजन कर उक्त स्तोत्र के नियमित पाठ द्वारा मनो-वाञ्छित पति पा सकती है।
३॰ प्रणय सम्बन्धों में माता-पिता या अन्य लोगों द्वारा बाधा डालने की
स्थिति में उक्त स्तोत्र पाठ कर कोई भी दुखी स्त्री अपनी कामना पूर्ण कर
सकती है।
४॰ उक्त स्तोत्र का पाठ केवल स्त्रियों को करना चाहिए। पुरुषों को
‘विरह-ज्वर-विनाशक, ब्रह्म-शक्ति-स्तोत्र’ का पाठ करना चाहिए, जिससे
पत्नी
का सुख प्राप्त हो सकेगा।.

पितृ स्वप्न मे आकर अपनी इच्छा बताते हैं

लाभ दयाक copy past सात शनिवार लगातार लोटे में जल कच्चा दूध चुटकी सिन्दूर एक बताशा और दूर्वा डाल कर सूर्योदय समय पीपल की जड मे चढाएं दीपक जलाकर सात परिक्रमा करें बिना पिछे देखें वापिस घर आए। तो पितृ स्वप्न मे आकर अपनी इच्छा बताते हैं उस अनुरूप कार्य करने से  पितृशांति होती है।

मकान बनने मे बाधा आ रही हो तो

गुरु सिमरन।जय माता दी।
अगर मकान बनने मे बाधा आ रही हो तो मंगल वार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी की मूरती के सामने चमेली के तेल  का दिया जला कर
      कवन सो काज कठिन जग माही।
जो नहि होय तात तुम पाही ।चौपाई का जप करे।
लडडू का भोग लगाये
108 बार 11 मंगल को जप करे ।कामना पूरी होगी।श्री राधे।।

तंत्र शास्त्र में कई विशेष प्रकार के पत्थरों का

तंत्र शास्त्र में कई विशेष प्रकार के पत्थरों का भी महत्व है।
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इन पत्थरों से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। हकीक एक
ऐसा ही चमत्कारीक
पत्थर है। हकीक का प्रयोग विभिन्न टोटकों एवं प्रयोगों
में किया जाता हैतंत्र
शास्त्र में हकीक को चमत्कारीक पत्थर माना गया है। यह
भी कहा जाता है कि
जिसके घर में हकीक होता है, वह कभी गरीब नहीं हो
सकता।हकीक पत्थर का
तांत्रिक क्षेत्र में बहुत महत्व है। विभिन्न टोटको एवं
प्रयोगों से हकीक पत्थर
लक्ष्मी का प्रतीक भी माना गया है। इसलिए कहा गया
है कि जिसके घर में
हकीक होता है। वह कभी दरिद्र हो नहीं सकता। हकीक
पत्थर का विभिन्न
पूजा-पाठ, साधनाओं और उपासनाओं में प्रयोग किए जा
सकते हैं।
किसी शुक्रवार के दिन रात्रि में पूजा उपासना करने के
पश्चात एक हकीक
माला लें और एक सौ आठ बार ऊँ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं
लक्ष्मी वासुदेवाय नम: मंत्र
का जप करें।
इसके बाद माला को लक्ष्मीजी के मंदिर में अर्पित कर दें।
धन से जुड़ी हर समस्या
हल हो जाएगी। यदि ग्यारह हकीक पत्थर लेकर किसी
मंदिर में चढ़ा दें और ऐसा
कहें कि अमुक कार्य में विजय होना चाहता हूं तो निश्चय
ही उस कार्य में विजय
प्राप्त होती है। जो व्यक्ति श्रेष्ठ धन की इच्छा रखते हैं वह
रात में 27 हकीक
पत्थर लेकर उसके ऊपर लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें, तो
निश्चय ही उसके
घर में अधिक उन्नति होती है इस तरह यह पत्थर धन से जुड़ी
आपकी हर
समस्या का हल कर देता है। धरती पर मिलने वाले कई पत्थरों
और रत्नों में
हकीक का अलग ही महत्व है। यह लाल, पीले व सफेद आदि
कई रंगों में पाया
जाता है।
इसकी लोकप्रियता की एक वजह इसका सस्ता व आसानी
से सुलभ होना भी है।
विशेष रूप से नर्मदा और गोदावरी नदी के तल में पाए जाने
वाले हकीक को हक
दिलाने वाला पत्थर माना जाता है। जिस हकीक में सफेद
पट्टियां पाई जाती हैं,
उसे सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षात्मक माना जाता है। इस रत्न के
बारे में यह भी कहा
जाता है कि इस रत्न को धारण करने वाले किसी व्यक्ति
पर अगर कोई संकट
आता है, तो वह उस संकट को अपने ऊपर लेकर टूट जाता है।
वैसे आमतौर
पर मान्यता है कि हकीक को धारण करने से सौभाग्य की
वृद्धि होती है और
दरिद्रता का नाश होता है। इससे भूत-प्रेत एवं बुरी
आत्माओं से संबंधित बाधा
भी दूर होती है।
यह विष के प्रभाव को भी दूर करता है। इसलिए कई राजा-
महराजा इससे
बने प्यालों में रसपान करते थे। काले रंग का हकीक आरोग्य
में भी उपयोगी
माना जाता है, जबकि सफेद रंग का हकीक मानसिक तनाव
को दूर करता है।
इसी प्रकार नीला हकीक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के
लिए मंत्रों के जप में
प्रयोग में आता है। हकीक के 27 पत्थरों को लक्ष्मी मंत्र से
अभिमंत्रित करके
लक्ष्मी माता की मूर्ति के नीचे स्थापित कर दिए जाएं,
तो घर में आर्थिक समृद्धि होने लगती है।

Gyan gaytri ka

 गायत्री

जो कार्य योगी बड़ी कष्ट दायक साधनाओं / तपस्या से बहुत अधिक समय में पूरा कर पाते हैं, वह महान कार्य बड़ी सरल रीति से गायत्री के जप एवं ध्यान मात्र से स्वल्प समय में पूरा हो जाता है~

1. सूक्ष्मदर्शी ऋषियों ने गायत्री का चित्रण पंचमुखी और दसभुजी रूप में किया है।
महाकाल स्तोत्रं :-
इस स्तोत्र को भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था. इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है. इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है . शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है . नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है . मन में प्रफुल्लता आ जाती है . भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बड जाती है .
ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै नमः
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नमः
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमः
ॐ ह्रीं माया - स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः
फल श्रुति
इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम
मन्त्र के यही पाँच भाग गायत्री के पाँच मुख हैं।

पाँच देव भी इन पाँच मुखों के प्रतीक हैं। पाँच तत्वों से बना हुआ शरीर और पाँच प्राण, पाँच उप- प्राण, पाँच यज्ञ, पाँच अग्नि, पंच-क्लेश आदि अनेक पंचकों का रहस्य, मर्म और तत्व ज्ञान गायत्री के मुख से मुखरित होता है।

2. जैसे पूर्व, पश्चिम आदि 10 दिशाएं होती हैं - वैसे ही जीवन विकास की दस दिशाएं हैं। पाँच सांसारिक लाभ (स्वास्थ्य, धन,विद्या, चातुर्य और दूसरों का सहयोग प्राप्त करना) गायत्री की वाँईं पाँच भुजाएं हैं। इसी प्रकार पाँच आत्मिक लाभ (आत्म-ज्ञान, आत्म-दर्शन, आत्म-अनुभव, आत्म-लाभ और आत्म-कल्याण) दाहिनी पाँच भुजाएं हैं।

3. यद्यपि यह गायत्री का भावना चित्र है- अलंकारिक रूप है, जिससे यह प्रकट होता है कि गायत्री में कितने प्रकार के रहस्य छिपे हैं। वास्तव में तो माता शक्ति रूप हैं - उनका कोई रूप नहीं। वह शब्द,रूप आदि पंचभौतिक तत्वों से परे हैं।

केवल ध्यान द्वारा उसको अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किसी रूप या प्रतिमा की धारणा की जाती है। संसार का ऐसा कोई कष्ट नहीं जो गायत्री माता की कृपा से न कट सके और विश्व की ऐसी कोई वस्तु नहीं जो माता के अनुग्रह से प्राप्त न हो सके।

4. साधक किस प्रयोजन के लिए गायत्री की साधना, ध्यान, जप करना चाहता है - इस बात को दृष्टि में रख कर गायत्री मन्त्र के 24 अक्षरों की दिव्य शक्ति धाराओं को संलग्न चित्रों में अलग-अलग रूपों में दिखाया गया है।

माता के किस स्वरूप का किस कार्य के लिए किस प्रकार ध्यान करना चाहिए इन चित्रों से स्पष्ट हो जाता है।

5. गायत्री-माता का मनुष्य शरीर में जब प्रवेश होता है तो वह सद्बुद्धि रूप में होता है। साधक के विचार और स्वभाव में धीरे-धीरे सतोगुण बढता है और उसमें सतोगुणी प्रवृतियों का विकास होता है।

6. साधक और ईश्वर सत्ता गायत्री माता के बीच में बहुत दूरी है, लम्बा फासला है। इस दूरी को हटाने का मार्ग इन 24 अक्षरों के मन्त्र से होता है।

जैसे जमीन पर खड़ा हुआ मनुष्य सीढ़ी की सहायता से ऊँची छत पर पहुँच जाता है वैसे ही गायत्री का उपासक इन 24 अक्षरों की सहायता से क्रमशः एक- एक भूमिका पार करता हुआ, ऊपर चढ़ता है और माता के निकट पहुँच जाता है।

7. शिव को योगेश्वर भी कहते हैं। योग की समस्त शक्तियों और सिद्धियों के उद्गम केन्द्र वे ही हैं। मस्तक पर चन्द्रमा तत्वज्ञान का प्रतिनिधि है। गले में सर्पों का होना-दुष्ट और पतितों को भी गले से लगाने की साधुता का द्योतक है।

वृषभ वाहन मजबूती, दृढ़ता, स्थिर चित्त,श्रम शीलता एवं पवित्रता का प्रतीक है। शिव इन्हीं गुणों के समूह हैं। वे संहारक हैं - दोष, दुर्गुण, अनाचार, अविचार और अनुपयुुक्तता का संहार करते हैं। अनावश्यक का निवारण और संहार करने का कार्य ईश्वर के शिव स्वरूप द्वारा होता है।

8. गायत्री के शाम्भवी स्वरूप की साधना से जो गुण शिव के हैं, शाम्भवी के हैं उन्हीं का प्रसाद साधक को भी मिलता है। शिव के तीन नेत्र हैं। तीसरा नेत्र जिसे 'दिव्य चक्षु' कहते हैं, आत्म तेज से परिपूर्ण होता है। शाम्भवी स्वरूप की साधना करने से उपासक का यही तीसरा नेत्र खुलता है और उसे दिव्य-दृष्टि प्राप्त होती है।

9. पूर्ण रूप से प्रारब्ध परिवर्तन तो असम्भव है - पर माता की कृपा से इसमें अनेक संशोधन और परिवर्तन हो सकते हैं। भविष्य के लिए उत्तम भाग्य निर्माण हो सकता है। माता की कृपा से कठिन दुख दायी प्रारब्धों में संशोधन हो जाता है।
अत्यन्त दुस्तर और असह्य कष्टों की यातना हल्की होकर बड़ी सरल रीति से भुगत जाती हैं।

10. ऐश्वर्य वर्द्धिनी लक्ष्मी की प्राप्ति, महाशत्रुओं से संरक्षण, अदृश्य सहायता प्राप्त करने, पारिवारिक सुःख - शान्ति व सन्तुष्ट दाम्पत्य जीवन, अच्छी सन्तान प्राप्त करने सहित जितने भी अच्छे मनोरथ हों - चित्रों में दिखाए माता के उन स्वरूपों की साधना,ध्यान, जप से उन्हें पूर्ण किया जा सकता है।
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नौ ग्रहों के दोष दूर करने के लिए मोर पंख के उपाय

गुरु सिमरन।जय माता दी।सभी नौ ग्रहों के दोष दूर करने के लिए मोर पंख के उपाय
यदि आप कुंडली में स्थित ग्रहों के बुरे प्रभाव दूर करना चाहते हैं या आपको मंगल शनि या राहु केतु बार-बार परेशान करते हों तो मोर पंख को 21 बार मंत्र सहित पानी के छीटे दीजिए। इसके बाद मोर पंख को घर में किसी श्रेष्ठ स्थान पर स्थापित कीजिए। उसके बाद किस ग्रह के लिए कौन सा मंत्र जपना चाहिए वो इस प्रकार से हैं :
सूर्य के लिए उपाय -
रविवार के दिन नौ मोर पंख ले कर आएं और पंख के नीचे मैरून रंग का धागा बांध लेँ। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियां रखें, गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– दो नारियल सूर्य भगवान को अर्पित करें।
चंद्र के लिए उपाय -
सोमवार को आठ मोर पंख ले कर आएं, पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बांध लेँ। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियां भी रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– पांच पान के पत्ते चंद्रमा को अर्पित करें। बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं।
मंगल के लिए उपाय -
मंगलवार को सात मोर पंख ले कर आएं, पंख के नीचे लाल रंग का धागा बांध लेँ। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें…
ऊँ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– दो पीपल के पत्तों पर चावल रख कर मंगल देव को अर्पित करें। बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं।
बुध के लिए उपाय -
बुधवार को छ: मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे हरे रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– जामुन बुद्ध ग्रह को अर्पित करें। केले के पत्ते पर रखकर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं।
गुरु के लिए उपाय -
गुरुवार को पांच मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे पीले रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ ब्रहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें।
– बेसन का प्रसाद बना कर चढ़ाएं।
शुक्र के लिए उपाय -
शुक्रवार को चार मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें।
– गुड़-चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं।
शनि के लिए उपाय -
शनिवार को तीन मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे काले रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें
ऊँ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– तीन मिटटी के दिये तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें।
– गुलाब जामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं।
राहु के लिए उपाय -
शनिवार को सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें…
ऊँ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– चौमुखा दिया जला कर राहु को अर्पित करें।
– कोई भी मीठा प्रसाद बना कर चढ़ाएं।
केतु के लिए उपाय -
शनिवार को सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।
ऊँ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
– पानी के दो कलश भर कर राहु को अर्पित करें।
– फलों का प्रसाद चढ़ाएं।
घर का वास्तु ठीक करने का उपाय –
घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें।श्री राधे।।।

Saturday, 12 September 2015

भैरवनाथ को खुश करना बेहद आसान

भैरवनाथ को खुश करना बेहद आसान है लेकिन अगर वे रूठ जाएं तो मनाना बेहद मुश्किल। पेश है काल भैरव अष्टमी पर कुछ खास सरल उपाय जो निश्चित रूप से भैरव महाराज को प्रसन्न करेंगे।

1. रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।

2. उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।

3. शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।

4. प्रति गुरुवार कुत्ते को गुड़ खिलाएं।

5. रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें।

6. सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।

7. शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें।

8. रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।

9. पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।

10. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।